Monday, November 25, 2013

राह

ए अजनबी न जाने क्यों

ए निगाहें हर पल तुम्हें तलाशती है

क्या रूप है जिसको ए निहारती है

वजूद इसका ना जाने कैसे पनपा

नाजुक से इस दिल के कोने में

मुलाकात अब अक्सर होती है

बंद पलकों के झरोकों में

सपनों के इस अनछुए संसार की

जाने कैसी कशिश का

कौन सा पैगाम है ए

अरमानों कि दहलीज़ पर खड़ी निगाहें

करने आलिंगन तुम्हें ए अजनबी

तलाशती दिल कि राहें है

तलाशती दिल कि राहें है 

6 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार २६/११/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर कि जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।मेरे ब्लॉग पर भी आयें ---http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in/पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी(गीत

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  2. बंद पलकों के झरोकों में

    सपनों के इस अनछुए संसार की

    जाने कैसी कशिश का

    कौन सा पैगाम है ए

    अरमानों कि दहलीज़ पर खड़ी निगाहें

    करने आलिंगन तुम्हें ए अजनबी

    तलाशती दिल कि राहें है
    बहुत खुबसूरत !
    नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ |
    नई पोस्ट तुम

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  3. कल 27/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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