Tuesday, December 17, 2013

मंगल बेला

सुबह कि लालिमा में तेरी परछाई थी

गुलाब कि पंखुड़ियों में लिपटी

जैसे कोई कंचन काया थी

परिणय सूत्र कि जैसे मंगल बेला आयी थी

गूँज रही कहीं पास ही जैसे शहनाई थी

कितना हसीन पाक था ये मंजर

कुदरत भी जैसे साक्षी बन आयी थी

बारिश कि शबनमी बूंदे

पिरों रही जैसे मोतियों कि माला थी

सुबह कि लालिमा में तेरी परछाई थी

गुलाब कि पंखुड़ियों में लिपटी

जैसे कोई कंचन काया थी

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