Monday, March 21, 2016

मर्ज़

हवा न जाने कौन सी छू गयी

मर्ज़ इश्क़ का हमको दे गयी

खिलते गुलाब सा मुखड़ा

जैसे सौगात में दे गयी

जालिम बदल फ़िर फिजाँ की बयार

रुख से नक़ाब उड़ा ले गयी

ओर जाते जाते , दिल के चमन में

जन्नत बसा गयी

ना आया जिसे कभी इश्क़ करना

उसे इश्क़ की वादियों में तन्हा छोड़ गयी

हवा न जाने कौन सी छू गयी

मर्ज़ इश्क़ का हमको दे गयी

हवा न जाने कौन सी छू गयी

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