Wednesday, February 8, 2017

शहर की हवा

मुझको तेरे शहर की हवा लग गयी

गली गली चर्चा यह आम हो गयी

बदनामी इसमें फिर कैसी

बस मेरे इश्क़ कि आगाज़ सरेआम हो गयी

मुझको तेरे शहर की हवा लग गयी

नक़ाब तेरा रुख से उड़ा हवा जो अपने साथ ले गयी

नजरें तेरी दिल मेरा अपने साथ ले गयी

गली गली चर्चा यह आम हो गयी

मुझको तेरे शहर की हवा लग गयी

तेरे मोहल्ले की गालियाँ मेरी पनाहगार बन गयी

फ़ासले तेरे मेरे दरमियाँ कही खो गयी

गली गली चर्चा यह आम हो गयी

मुझको तेरे शहर की हवा लग गयी


2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09-02-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2591 में दिया जाएग्या
    धन्यवाद

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    1. दिलबाग भाई

      रचना लिंक करने के लिए धन्यवाद्
      सादर
      मनोज

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