Wednesday, June 7, 2017

इंतजार

वेदना अपनी बयाँ ना कर पाया

किताब के पन्नों पे इसे उकेर ना पाया 

रोशनी चुरा ले गया कोई काफ़िर हमारी

भटका गया मंजिल से राह हमारी 

पाना जिस मंजिल को कभी हसरतें थी हमारी 

कशिश अधूरी रह गयी थी वो हमारी 

आलम अब तो बस बेबसी का संग था 

रूह जलाने को

यादों का अग्नि कुंड पास था

ना दरियां में अब वो तूफां था

ना हवाओँ में वो आगाज़ था

सुन ठहर जाती थी मंजिल जिसे कभी

अफसानों का वो तिल्सिमि पिटारा अब पास ना था 

बुझते चिलमन को रोशन रहने

उस शमा का फिर भी इंतजार था

फिर भी इंतजार था 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (08-06-2017) को
    "सच के साथ परेशानी है" (चर्चा अंक-2642)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. अधूरी कोशिश करोर पूरी होती है ... कई बार सफ़र लम्बा हो जाता है ... भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

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