Saturday, August 19, 2017

स्वाभिमानी

माना ज्ञानी नहीं अज्ञानी हूँ मैं

फ़िर भी गुरुर से सराबोर रहता हूँ मैं

तिलक हूँ किसीके माथे का

महक से इसकी नाशामंद रहता हूँ मैं

नाज़ हैं ख़ुद पे बस इतना सा

अभिमानी नहीं स्वाभिमानी हूँ मैं

अपनों से फिक्रमंद नहीं रजामंद हूँ मैं

दिल की दौलत से ऐसा सजा हूँ मैं

फ़कीरी में भी अमीरी से लबरेज़ रहता हूँ मैं

ना ही मैं कोई संत हूँ ना ही कोई साधू हूँ

फ़िर भी एक सच्चा साथी हूँ मैं

क्योंकि

अभिमानी नहीं स्वाभिमानी हूँ मैं 


No comments:

Post a Comment