Tuesday, August 21, 2018

छाँव

कितनी रूमानी यह रात हैं

सितारों से सजी बारात हैं

मिलन का खूबसूरत आगाज हैं

चाँदनी दे रही यह पैगाम हैं

दो रूहों की यह सुहानी रात हैं

थम जाए यह पहर

मंद हो जाए चाँद का आफताब

निहारुँ अपनी प्रेयसी की

हिरणी सी मदमाती चाल

झीलों सी सुन्दर आँख

पहलु में उसके गुजर जाए हर यह रात

यूँही मिलती रहे सदा

उसके दामन में

खुले केशवों की छाँव

खुले केशवों की छाँव 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-08-2018) को "नेता बन जाओगे प्यारे" (चर्चा अंक-3071) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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