Monday, December 24, 2018

यादों की अलमारी

कुछ यादें नयी सुहानी

कुछ यादें पुरानी कहानी

सहेज लूँ

किताब बना लूँ

खोलू जब यादों की अलमारी

छलक आये नयना

बिखरने लगे यादें जुबानी

रंगों की बरसात में

महक उठे बगीया सारी

सँजोयी हुई वो यादें

कुछ नादानी कुछ आपबीती

कुछ मधुर गीतों से

कुछ बेसुरे तानों से सजी

खोलू फ़िर वो हृदय राज

गूँज उठे यादों की अलमारी

गूँज उठे यादों की अलमारी 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-12-2018) को "यीशु, अटल जी एंड मालवीय जी" (चर्चा अंक-3197) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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