Sunday, April 7, 2019

तन्हाईयाँ

कभी अपनी तन्हाईयों में

हमें याद करना तुम

गल मिल रोयेंगे दोनों खूब

उदासी के उस आलम में

दिल की किताब खोले रखना तुम

लहू से रंगें अक्षरों में

सूखे गुलाब तलाशेंगे हम तुम

अनमोल हो जायेंगे यादों के हर सबब

मिलेंगे जब दो बिछड़े हमसफ़र

ना तुम कुछ कहना ना मैं कुछ कहूँगा

इस इंतज़ार को सिर्फ आँखों से बयाँ करेंगे हम तुम

टूटे हुए अरमानों को

हर अहसासों में जिन्दा रखेंगे हम तुम

वादा बस इतना करो तुम

अपनी तन्हाईयों में हमसे मिला करोगे तुम

हमसे मिला करोगे तुम   

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-04-2019) को "भाषण हैं घनघोर" (चर्चा अंक-3299) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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