Thursday, August 15, 2019

सजा

इल्म इसका नहीं

उनकी गुनाहों का मैं सजायाफ्ता हो गया

बस

तारीख़ की तहरीर में इश्क़ बाग़ी हो गया

अमल किया जिस तामील को खुदा मान

निगाहों के क़ातिल का वो तो आफ़ताब निकला

खुली जुल्फों की कैद में

कतरा कतरा लहू कलमा इश्क़ लिखता चला गया

बड़ी नफ़ासत नजाकत से सँवारा था जिसे

क़त्ल ए गुनाहों में वो दिल भी शरीक हो गया

कब ऐ मासूम नूर ए अंदाज़

उनकी क़ातिल निगाहों का शिकार हो गया

खुदा को भी इसका अहसास हो ना पाया

और बिन गुनाह किये ही मैं

उनकी हसीन गुनाहों का सजायाफ्ता हो गया

सजायाफ्ता हो गया   

4 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-08-2019) को " समाई हुई हैं इसी जिन्दगी में " (चर्चा अंक- 3430) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. आदरणीय अनीता जी

      मेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार

      सादर
      मनोज क्याल

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  2. सुन्दर रचना

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    1. आदरणीय ओंकार जी

      मेरी रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार

      सादर
      मनोज क्याल

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