tag:blogger.com,1999:blog-88443314541956062802024-03-18T15:17:28.830+05:30RAAGDEVRANPOEMS BY MANOJ KAYALMANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13656162462576727173noreply@blogger.comBlogger1682125tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-27911524603340708432024-03-11T12:08:00.001+05:302024-03-11T15:37:46.173+05:30ll आलिजा ll<p>सारंगी तान श्यामवर्ण अपराजिता चंदन खुशबु l</p><p>कजरी गजरे सुरमई सुरमे गुत्थी नफासत माथे बिंदु ll</p><p><br /></p><p>किवदंती पिया वैजयन्ती खन खनाती झांझर कंगन l</p><p>अकल्पित रूह रोम सँवर भँवर आह्लादित दामन ll</p><p><br /></p><p>रूद्राक्ष ताबीज साँझ क्षितिज काया कामिनी l</p><p>विभोर साधना मन अनुरागी आँचल धुन ताल्लीन l</p><p><br /></p><p>मन्नत कलाई धागे लकीरें चाँद दुआएं काफिर l</p><p>स्वरांजली सामंजस्य धरा कर्णफूलों कुमकुम कालीन ll</p><p><br /></p><p>रैना सूत्र सौगातें सौगंध पानी रूप केश घटा कहानी l</p><p>साया माया बदरी जादू घूंघट घुँघरू साक्षी धूप सयानी ll</p><p><br /></p><p>अग्नि शिखा आभा मंडल बृज सखी बोल सुहानी l</p><p>करतल ध्वनि सजली ध्यान बाँसुरी मीठी मीठी धानी ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-32620108802961167562024-03-02T17:50:00.001+05:302024-03-02T17:50:08.085+05:30दूरियाँ<p>दूरियाँ थी मेरे रहनुमा राहों ख्यालातों किनारों में l</p><p>गौण मौन खड़े थे इस पथ सारे जज्बात मुहानों पे ll </p><p><br /></p><p>डूब गयी थी कमसिन काया अलबेली मोज धाराओं में l </p><p>निकाह कामिनी बाँधी जिसे मन्नत पाक दिशा धागों ने ll </p><p><br /></p><p>रुखसत अश्रु व्यथित रो ठहरे हुए नयनों परिभाषा में l </p><p>खोये पैगाम अंजुमन सागर बह चले जल तरंगों पे ll </p><p><br /></p><p>गुलदस्ता मेहर मुरझा गया स्वप्निल अंकुरण से पहले l </p><p>अंतर्बोध ताज मीनारे ढहा बहा गया सूखे सैलाब तले ll </p><p><br /></p><p>सौदा गुलमोहर किरदारों का टाँक गया पैबंद इसका l </p><p>फूल किताबों के बदरंग हो गए इन सलवटों के पीछे ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-74673674400475426152024-02-02T10:43:00.003+05:302024-02-02T10:43:54.258+05:30सजा<p>अविरल सिसकियाँ अंतर्मन पहेली पदचापों की l</p><p>प्रश्नन चिन्ह पानी तरंगों मचलती मझधारो की ll </p><p><br /></p><p>जिस्म सुनहरी झुर्रियां लिपटी रूह बिन बरसातों की l </p><p>वात्सल्य खामोश अनकहे खोये हुए शब्द बातों की ll </p><p><br /></p><p>मसौदा लेखन अम्बर इस काफिर को आज़माने की l </p><p>चिनार दरख्तों संग निपजी वो सफर मुलाक़ातों की ll </p><p><br /></p><p>आराधना रीत सूनी वेदना कोरे फागन रंग साधना की l</p><p>उजाड़ती मत असहमत गुलज़ार गलियां बारातों की ll</p><p><br /></p><p>सब्र सदियों आईना गर्त उस इंतजार की l</p><p>खुशफहमी गलतफहमी इस नादानी की ll</p><p><br /></p><p>कल्पना भँवर टूटा ना जब दिल लगाने की l</p><p>चाह थी उस चाँद की नजर बन जाने की ll</p><p><br /></p><p>कैसे भूल जाऊँ हवा उस गली चौबारे की l</p><p>आदत हैं जिसको सिर्फ दिल लगाने की ll</p><p><br /></p><p>रब ने दी थी मोहलत मोहब्बत में जी जाने की l</p><p>मयकशा छलका गया सजा इसे जी जाने की ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-68923288432579447192024-01-20T10:33:00.001+05:302024-01-20T10:33:15.174+05:30ll अश्रुधार ll<div>तेरे सहर की दर्पण भीड़ में भींगी पलकों टूटा था एक आईना l</div><div><br /></div><div>अश्कों जुनून साहिल बिखरा था हज़ारों बिन रंगों बरसात का ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>किरदार जुदा था आइने वजूद के उस नीले अम्बर महताब का l</div><div><br /></div><div>बंद पलकों उस कशिश लहू राज छुपे थे मोतियों अश्रुधार का ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>काश्तकार था यह इजहार इश्तहार इस अजूबी दस्तकार का l</div><div><br /></div><div>पढ़ समझ ना सका धुन्ध बूँद लिपटी धुन इस कलमाकार का ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>आवारा बादल मूँदी मूँदी आँखें इस खाली खाली दिल मकां रात का l</div><div><br /></div><div>था तमअदृश्य सजली चकोर रूह बदलती गहरी परछाई साथ का ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>गूँज रहा जिक्र कहीं कहीं सिर्फ तेरी इस गुमनाम अलबेली साँझ का l</div><div><br /></div><div>परवाज भरते आईनों ने हज़ारों परवान बिखेरे तेरे अक्स आकर का ll</div>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-75732277055061372024-01-07T09:53:00.001+05:302024-01-07T09:53:07.755+05:30ख्याल<div>इत्र सी ख्वाबों तरंगें महकाती साँसे खतों की l</div><div><br /></div><div>गुलदस्ता वो पुराने अघलिखे ख्यालातों की ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>अकेले में खिलखिला दे मुस्कान जो अधरों की l</div><div><br /></div><div>पहेली वो मेरे चाँद के अनकहे अल्फाजों की ll </div><div><br /></div><div><br /></div><div>पुंज गूंज वज्र अंबर सरीखी मलिनी गणना की l </div><div><br /></div><div>घूंघट वेणी छिपी केश माधुर्य यन्त्र मंत्रणा की ll </div><div><br /></div><div><br /></div><div>अर्जियाँ लिखती लहरें कपोलों मनमर्जियाँ की l </div><div><br /></div><div>खोई धड़कने तलाशती भींगी डूबती साँसों की ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>साँझ ढलती मधुर रंग छलकाती संगम बेला किरणों की l </div><div><br /></div><div>झांझर घुँघरू मन दर्पण नचा जाती अघलिखे ख्यालों की ll</div>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com22tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-28586070436557103662023-12-04T18:10:00.003+05:302023-12-04T18:12:59.209+05:30पूर्ण शून्य<p>पूर्ण शून्य हूँ उस माथे बिंदिया सरताज का l</p><p>नमामी ललाट सजी सिंदूरी काया साज का ll</p><p><br /></p><p>किनारा उसकी आँचल ओढ़नी छाँव का l</p><p>इबादत सजी पतित पावनी गंगा साज का l</p><p><br /></p><p>नीलाम्बर उमंगों प्रार्थना सजी भाव का l</p><p>अर्ध आकार जिसमें निश्चल प्रेम साज का l</p><p><br /></p><p>प्रचंड उत्सर्ग प्रखर उस सृष्टि अभिमान का l</p><p>नयी धरा काव्य कहती इसकी नयन साँझ का ll</p><p><br /></p><p>केशों सजी उस वेणी मधुरस खास अंदाज का l</p><p>साँसों बिन धड़कती इसकी हिरनी चाल का ll</p><p><br /></p><p>कर्णकार गलहार उस वैजयंती शीतल धार का l</p><p>शून्य पूर्ण कर गया जो मेरी रूह कर्णताल साज का ll</p><div><br /></div>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-37671450228907934652023-11-23T16:15:00.001+05:302023-11-23T16:15:35.916+05:30साथ साथ<p>अलसाई सुबह की अंगड़ाई लेती चुस्की l</p><p>नचा रही मन पानी दर्पण अंतराल साथ ll</p><p><br /></p><p>भींगी ओस नमी ख्यालों की ताबीर खास l</p><p>मूंद रही नयनों को जगा रही फूलों साथ ll</p><p><br /></p><p>ख्वाबों की बेफिक्री सी दिलकशी उड़ान l</p><p>परिंदों सी लुभा रही दिखा नये अंदाज ll</p><p><br /></p><p>लिहाफ़ गर्माहट भरी छुपी छुपी गुदगुदी रात l</p><p>ठिठुरती करवट बदलती काया बन बारात ll</p><p><br /></p><p>बादलों झुरमुट रुबाई तन्हा मंजर बरसात l</p><p>आरज़ू ग़ज़ल संवरे अधूरे सहर साथ साथ ll</p><p><br /></p><p>खिली धूप परछाई शरमाई गुलाब पंखुड़ियां नाल l</p><p>खोल गयी कई पोल कपोल कड़ियां एक साथ ll</p><div><br /></div>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-66471814459336918632023-11-06T19:05:00.003+05:302023-11-06T19:05:36.906+05:30आत्मबोध<div>मौन स्तब्ध स्वीकृति लिए स्पर्श जो था एक अजनबी स्पंदन का l</div><div><br /></div><div>मानो इश्क़ इजहार था माधुर्य मधुरम आत्मबोध अभिनन्दन का ll </div><div><br /></div><div><br /></div><div>निश्छल कल कल रगों बहती इसकी प्रेरणा थी जीवनदयानी सी l </div><div><br /></div><div>तल्लीन मुग्ध तिल्सिम में सुखद फिर भी लगी थी इसकी ये छाँव ll </div><div><br /></div><div><br /></div><div>पथिक सा इस पगडण्डी चल छूने लगा सप्त सुरों के सरगम साज l </div><div><br /></div><div>सम्मोहित इसमें साँसों की आस अभिनय सा था गुलजारों का साथ ll </div><div><br /></div><div><br /></div><div>वैदेही अभिलाषा आतुर सी संजो रही पल छीन एक नया आकार l </div><div><br /></div><div>मिला रंग गयी जैसे अपने रंगों मेरे रूह में अपनी खनक आवाज़ ll </div><div><br /></div><div><br /></div><div>सिमट गयी सारी खुशियों की दुनिया इस गुलमोहर खुशबू अंदाज़ l </div><div><br /></div><div>अपनत्व अहसास सीखा गया गुलज़ार मोहब्बत के हसीन अंदाज़ ll </div><div><br /></div><div><br /></div><div>अनुभूति सहज सरल इस एकाकी पहेली पहलु उस किरदार की l </div><div><br /></div><div>बिन साँसे धड़कना सीखा गयी थी किसी ओर के दिल ओ साज में ll</div><div><br /></div>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-72353513241241621392023-10-02T10:10:00.001+05:302023-10-02T10:10:04.499+05:30उन्माद<div>इश्क में उसके बार बार हर बार उजड़ा हूँ l</div><div><br /></div><div>दरख्तों के पतझड़ शायद सावन नहीं पास ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>टूट बिखरा इसकी फ़िज़ाओं अनगिनत बार l</div><div><br /></div><div>दिल फिर भी ना सुने इन कदमों की आवाज ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>रंग वो दूर था कही ना जाने क्यों बादलों पार l</div><div><br /></div><div>चाँद ने दाग तिल छुपा रखा जैसे कोई राज ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>उन्माद इश्क नचा रहा हर चौबारे की गली गली फांस l</div><div><br /></div><div>घुँघरू की तरह बजता गया उसके कदमों धूलो आस ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>सब्र इम्तिहान उजड़ उजड़ बिखरता इश्क लहू साथ l</div><div><br /></div><div>अश्कों प्रीत सागर गहराई समा गयी इसके साथ ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>सूराख आसमाँ इश्क आँचल छू गया दिल के तार l</div><div><br /></div><div>बहक गया मन एक बार फिर बिखर जाने के बाद ll</div>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-41299827466238837622023-09-08T13:16:00.002+05:302023-09-08T13:16:29.909+05:30प्रफुल्लित निंद्रा<p>तपती रेगिस्तानी रेत में छाले उभरे नंगे पांव में l</p><p>निपजी थी एक जीवट विभाषा इसके साथ में ll</p><p><br /></p><p>बुलंद कर हौसलों को बढ़ता चल यामिनी राह पे l</p><p>विध्वंशी लू थपेड़े पराजित से नतमस्तक साथ में ll</p><p><br /></p><p>मृगतृष्णा प्यासी इस धरोहर पिपासा रूंदन नाद में l</p><p>सुर्ख लहू भी जम गया बबूल की सहमी काली रात में ll</p><p><br /></p><p>खंजर चुभोती तम काली घनी कोहरी डरावनी छांव में l</p><p>रुआँसा उदास अकेला रूह अर्ध चाँद परछाई साथ में ll</p><p><br /></p><p>कुंठित मन व्याकुल अभिलाषा अधीर असहज वैतरणी नाच में l</p><p>धैर्य धर अधरों नाच रही फिर भी निंद्रा प्रफुल्लित अपने साथ में ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-11351301727350767182023-09-03T14:27:00.001+05:302023-09-03T14:27:14.170+05:30सगर<div>गुजारी थी कई रातें ख्वाबों के सिरहाने तले l</div><div><br /></div><div>सितारों की आगोश में चाँदनी लिहाफ तले ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>फिर भी तवायफ सी थी ख्वाहिशें धड़कनों की l</div><div><br /></div><div>राहों टूटे घुँघरू पिरो ना पायी माला साँसों की ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>बंदिशें कौन सी क्यों थी जाने चाँद की पर्दानशी में l </div><div><br /></div><div>बेपर्दा जो कर ना पायी पलकों तले थे जो राज छुपे ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>दूरियों के अह्सास में भी जैसे कोई आहट साथ थी l</div><div><br /></div><div>फुसफुसा रही हवा झोंकों में कुछ तो खास बात थी ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>मिली थी जो कल फिर उसी चौराहे बरगद छाँव तले l</div><div><br /></div><div>परछाई की उस रूमानी रूह में कोई रूहानी साँझ थी ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>आकार निराकार था उस प्रतिबिंब के दर्पण नजर में l</div><div><br /></div><div>फिर भी हर अल्फाजों में उसकी ही बात सगर थी ll</div>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-75103179315907082162023-08-08T18:17:00.002+05:302023-08-08T18:17:17.087+05:30ll बारिश की तान ll<div>कल देखा था बारिश को जुल्फों पर फिसलते हुए l</div><div><br /></div><div>हौले से आँचल को लिपट कंगन डोरी बंधते हुए ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>मदमाती सी भींग रही थी दामन की पतवार l</div><div><br /></div><div>संग पुरबाई झोंकों से कर्णफूल कर रहे थे करताल ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>महकी बालों गुँथी वेणी काले बादल रमी थी ऐसी l</div><div><br /></div><div>रंग रुखसार बिखरा गयी थी इन्द्रधनुषी घटा शरमाय ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>लहर संगीत धुन बरसी थी जो नयनों काजल से l</div><div><br /></div><div>कजरी स्याह मेघ सी ढाल गयी थी सुरमई आँखों में ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>झूमी थी जो झांझर एक पल शहनाई मृदुल तान सी l</div><div><br /></div><div>सहमा लज्जा गयी थी बिंदिया इस माथे दर्पण ताज की ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>घूंघट पहरा ना था इसके सुनहरे आसमाँ आँगन में l</div><div><br /></div><div>ग़ज़ल कोई लिख गयी कुदरत मानो बारिश बूँदों में ll</div>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-88091099819521940892023-08-03T13:24:00.001+05:302023-08-03T13:24:04.045+05:30सगर<p>गुजारी थी कई रातें ख्वाबों के सिरहाने तले l</p><p>सितारों की आगोश में चाँदनी लिहाफ तले ll</p><p><br /></p><p>फिर भी तवायफ सी थी ख्वाहिशें धड़कनों की l</p><p>राहों टूटे घुँघरू पिरो ना पायी माला साँसों की ll</p><p><br /></p><p>बंदिशें कौन सी क्यों थी चाँद की पर्दानशी में l</p><p>बेपर्दा कर ना पायी जो पलकों तले राज छुपे ll</p><p><br /></p><p>दूरियों के अह्सास में भी जैसे कोई आहट साथ थी l</p><p>फुसफुसा रही हवा झोंकों में कुछ तो खास खनकार थी ll</p><p><br /></p><p>मिली थी जो कल फिर उस पुराने बरगद छाँव तले l</p><p>परछाई की उस रूमानी रूह में रूहानी साँझ थी ll</p><p><br /></p><p>आकार निराकार था उस प्रतिबिंब के दर्पण नजर में l</p><p>फिर भी हर अल्फाजों में उसकी ही बात सगर रही थी ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-48963055610572070342023-07-07T12:33:00.001+05:302023-07-07T12:33:19.185+05:30शिकवा<p>अदना सा ख्याल यूँ ही जाने क्यों मन को भा गया l</p><p>गुफ़्तगू इश्क की खुद से भी कर लिया करूँ कभी ll</p><p><br /></p><p>गुजरु जब फिर यादों की उन तंग गलियों से कभी l</p><p>जी लूँ हर वो लम्हा उम्र जहां आ ठहरी थी कभी ll</p><p><br /></p><p>हँसूँ खुल कर मिल कर खुद से इसके बाद जब कभी l</p><p>झुर्रियों चेहरे की सफ़ेदी बालों की इतराने लगे खुशी ll</p><p><br /></p><p>अन्तर फर्क़ करूँ उन लिफाफों में कैसे फिर कभी l</p><p>सूखे गुलाब आज भी जब महक रहे ताजे से वहीं ll</p><p><br /></p><p>संवारू निहारूं जब जब दर्पण फुर्सत लम्हों में कभी l</p><p>परछाईं झलक इश्क की भी शिकवा और ना करे कभी ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-51523042803748103512023-06-14T12:10:00.009+05:302023-06-14T12:10:50.588+05:30छेड़खानियाँ<div>जिस धूप की छाँव बन जो सजी सँवरी फिरती थी कभी l</div><div><br /></div><div>छेड़खानियाँ उसकी अक्सर अश्कों की बारात सी थी सजी ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>जुल्फें अक्सर उसकी उलझी रहती थी सवालों से अटिपटी सी l</div><div><br /></div><div>फिर भी बेतरतीब लट्टों से यारी थी अँगुलियों रंगदारियाँ नयी सी ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>प्रतिबिंब हज़ारों थे मन दर्पण टूट बिखरे हुए हिस्सों में l</div><div><br /></div><div>फिर भी उसके अक्स का नूर था इसके हर हिस्सों में ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>तहरीर तालीम जिस दहलीज को दस्तक दे रही थी जो अब l</div><div><br /></div><div>रुखसत थी छाया इसकी अब अंजुमन मुकाम के इस सफर ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>रंग शायद उसकी जुल्फों का ढ़ल चाँदनी सा निखर गया होगा अब l</div><div><br /></div><div>शायद तभी मेरी सहर से साँझ का वक़्त भी मुकर्रर हो चला था अब ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>मेहंदी सी गहरी सुरमई छाप सजी थी जिस नफ़ासत धूप की l</div><div><br /></div><div>कनखियाँ हौले से टोह लेती नफ़ीसी उन छेड़खानियाँ रूह की ll</div><div><br /></div><div><br /></div><div>आलम खुमारी उन खतों में पड़ती झुर्रियों का ही था l</div><div><br /></div><div>सलवटें भरे उन सादे पन्नों में नाम उसका ही मयस्सर था ll</div>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-63327180747181795522023-05-01T11:22:00.001+05:302023-05-01T11:22:32.545+05:30आलाप<p>सुन सावन के पतझड़ की रागिनी आलाप l</p><p>ख़त लिख भेजे बारिश की बूँदों ने दिल के साथ ll</p><p><br /></p><p>उलझे उलझे केशे भीगे भीगे आँचल की करताल l</p><p>मानों दो अलग अलग राहें ढ़लने एक साँचे तैयार ll</p><p><br /></p><p>ग़ज़ल जुगलबंदी के साज झांझर भी थिरके नाच l</p><p>अर्ध चाँद और भी निखर आया सुन बारिश की ताल ll</p><p><br /></p><p>ताबीज बनी थी जो आयतें उस शरद पूनम की रात l</p><p>कर अधर अंश मौन महका गयी अश्वगंधा बयार ll</p><p><br /></p><p>शरारतों की बगावत थी वो रूमानी साँझ l</p><p>शहनाई धुन घुल गयी चूडियों की बारात ll</p><p><br /></p><p>काश थम जाती वो करवटें बदलती साँस l</p><p>मिल जाती दो लहरें एक संगम तट समाय ll</p><p><br /></p><p>रूह से रूह का था यह रूहानी अहसास l</p><p>मौसीक़ी से जुदा ना था बारिश का अंदाज ll</p><p><br /></p><p>सुन सावन के पतझड़ की रागिनी आलाप l</p><p>ख़त लिख भेजे बारिश की बूँदों ने दिल के साथ ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-48261371792746905412023-04-02T12:44:00.001+05:302023-04-02T12:44:22.839+05:30चेतना<p>उन्मुक्त परवाज भरता अभिव्यक्ति सार्गर्भित विचार l </p><p>अवहेलना व्याख्यान अविरल तुष्टीकरण करते निदान ll</p><p><br /></p><p>निंदक निंदा भागीदार खोले ऐसे अद्भुत द्वार l</p><p>द्रुतगति सींचे नीव नवनिर्माण के साँचे द्वार ll</p><p><br /></p><p>बबूल झाड़ियां मरुधरा नतमस्तक नील आकाश l</p><p>व्यथित पीड़ा खोज लायी मृगतृष्णा नव अवतार ll</p><p><br /></p><p>मेरुदंड हिमशिखर बाज सी पैनी चाणक्य धुरंधर बात l</p><p>शत्रु सहभागी सूत्र पिरो दिया दशों दिशा नया आयाम ll</p><p><br /></p><p>छोर क्षितिज संरचना गणना आदित्य के वरदान l</p><p>भूमिका महत्ता रोशनी संस्कृति विवेचन विचार ll</p><p><br /></p><p>अध्याय आधार गतिशील प्रतिपल शिक्षा के संस्कार l</p><p>विश्वस्वरुप आधिपत्य संजो रहा एक नया इतिहास ll</p><p><br /></p><p>सागर सरहदें मंथन निरंतर चेतन निर्माण चिंतन l</p><p>ध्वजा शंखनाद उद्घोष धरा उत्तम संगम तर्पण ll</p><p><br /></p><p>पृष्ठभूमि रचित सृजन भूमिका अभिलाषा ज्ञान दान l</p><p>प्रस्फुटित अंकुर गुलाब महका रहा ब्रह्मांड दर्श ज्ञान ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-61742161228770106902023-03-06T13:54:00.006+05:302023-03-06T14:08:42.778+05:30फागुन की थाप<p>रंगों की प्रीत ने घोली हीना सी ऐसी मदमाती सुगंध चाल में l</p><p>केशों में गुँथी वेणी भी थिरक उठी इसके ही रंगों साज में ll</p><p><br /></p><p>चंद्र शून्य भी भींग इसकी बैजन्ती के कर्ण ताल में l</p><p>लहरा रही कुदरत प्यासे मरुधर मृगतृष्णा ताल में ll</p><p><br /></p><p>इन्द्रधनुषी रंग बिखराती लाली बिंदी माथे सजी l</p><p>बाँसुरी सी बजा रही समंदर ख्यालों अरमान में ll</p><p><br /></p><p>खनखन करती चूडिय़ां सम्भाल रही ओढ़नी डोर साथ में l</p><p>राग सरगम बरस रही इनके रंगें इशारों छुपी जो साथ में ll</p><p><br /></p><p>चढी खुमारी रंगों की ऐसी फागुन के फाग में l</p><p>चाँद भी रंग आया डफली की मीठी थाप में ll</p><p><br /></p><p>मुरीद अधर रंग सहेजे जिस कोकिल कंठी राग के l</p><p>रंग गयी चुपके से वो मुझे अपने ही रंगों रुखसार में ll</p><p><br /></p><p>गुलाल गुलाब के बिखरते रंगों होली जज्बात में l</p><p>सांवला रंग भी निखर आया साँसों के रंगों रास में ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-69120680377704305972023-02-17T15:25:00.000+05:302023-02-17T15:25:17.778+05:30 उलझन <p>उलझन एक साँसों बीच चाँद क्यों अधूरा सितारों बीच l</p><p>मेहरम हवाओं आँचल बीच दाग क्यों चाँद माथे बीच ll</p><p><br /></p><p>फलसफा कुदरत का ताबीज बन डोरे डाले आँखों बीच l</p><p>अनोखा स्वांग रचा रखा कायनात ने चाँद के माथे बीच ll</p><p><br /></p><p>कभी अमावस की परछाई कभी ग्रहण की गहराई बीच l</p><p>नज़र कजरी बन आती ठहरी धड़कनों की अर्ध चाँद बीच ll</p><p><br /></p><p>अलाव सी तपती मृगतृष्णा का आलाप झांझर बीच l</p><p>सूखौ रही कल कल करती नदियां संगीत सागर बीच ll</p><p><br /></p><p>परखी बादलों ने जौहरी सी पनघट काया बदलती रूह बीच l</p><p>तस्वीर इस मंजर की इनायतॅ आयतें लिख रही चाँद बीच ll</p><p><br /></p><p>बेचैन अधीर मन गुमशुदा करवट बदलती रातों बीच l</p><p>पूछ रहा खुद से क्यों खो गया मेरा चाँद बदरी बीच ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-16951151978208440202023-02-02T18:30:00.001+05:302023-02-02T18:30:29.850+05:30छेड़खानियां<p>सप्तरंगी तरंगें थिरकती जिन बाँसुरी शहनाई की धुन l </p><p>निजामते पुकार लायी फिर उन छेड़खानियां की रूह ll</p><p><br /></p><p>आँधियों से जिसकी जर्रा जर्रा महका करता था कभी l</p><p>संवरने लगी वो आज फिर सुन दिल दस्तको॔ की धुन ll</p><p><br /></p><p>सिलसिला दो हसीन ख़यालात खिलते गुलाब जज्बातों का l</p><p>एक मौन स्वीकृति खुशमिजाज आलिंगन करती हवाओं का ll</p><p><br /></p><p>अर्ज़ बड़ा ही मासूम था इसकी उन अतरंगी अदाओं में l</p><p>तर्ज़ में जिसकी सितारें थे हर एक दिल्लगी इशारे में ll</p><p><br /></p><p>मिलन गुलदस्ता ख्वाब बना था जिस खत का कभी l</p><p>अधूरा वो खत आज भी पड़ा था उसी किताब बीच ll</p><p><br /></p><p>तराश नियति ने सजाये दो अलग अलग गुलदानों में l</p><p>मुरझा गये गुलाब दोनों जुदा हो अपनी ही साँसों से ll</p><p><br /></p><p>आज फिर अचानक खिलखिलायी जो यादों की सुनहरी धूप l</p><p>छू गयी फिर से उन नादान छेड़खानीयों की मीठी सी धुन ll</p><div><br /></div>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-65599652652624982602023-01-08T09:07:00.000+05:302023-01-08T09:07:02.843+05:30गुस्ताखियाँ<p>बेईमान लम्हों की हसीन नादान गुस्ताखियाँ l</p><p>कर गयी ऐसी मीठी मीठी दखलअन्दाज़िया ll</p><p><br /></p><p>शरमा तितली सी वो कमसिन सी पंखुड़ियां l</p><p>रंग गयी गुलमोहर उस चाँद की परछाइयाँ ll</p><p><br /></p><p>सुनहरी ढलती साँझ की मधुर लालिमा जिसकी l</p><p>संदेशा गुनगुना जाती यादों सिमटती रातों का ll</p><p><br /></p><p>अक्सर दस्तक देती चिलमन की वो शोखियाँ l</p><p>जुड़ी थी जिससे कुछ अनजाने पलों की दोस्तियाँ ll</p><p><br /></p><p>मेहरबाँ थी अजनबी राहें भटकती मृगतृष्णा बोलियाँ l</p><p>बन्ध गयी थी जिनसे इस अनछुए अकेलेपन की डोरियाँ ll</p><p><br /></p><p>स्पंदन एक मखमली सा था इनकी फ़िज़ाओं हवाओं में l</p><p>इत्र सा महका जाती आल्हादित मन अपनी गुस्ताखियों से ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-27549974246532291672022-12-05T14:52:00.005+05:302022-12-05T14:52:59.534+05:30संगिनी<p>कोहिनूर सी दिलकशी थी जिसकी बातों में l</p><p>महजबीं कायनात थी वो इन अल्फाजों की ll</p><p><br /></p><p>वसीयत बन गयी थी वो इस नादान रूह की l</p><p>संभाली थी जिसे किसी महफ़ूज़ विरासत सी ll</p><p><br /></p><p>हँसी लिये वो मुकाम उस लालिमा रुखसार का l</p><p>संदेशा गीत सुनाती मेघों पंखुड़ियां शबाब का ll</p><p><br /></p><p>परखी जिन पारखी निगाहों ने इस नायाब को l</p><p>मृगतृष्णा मुराद बन गयी उस जीने की राह को ll</p><p><br /></p><p>इस धूप की साँझ छाँव बनी थी जो कभी l</p><p>बूँद उस ओस की संगिनी सी गुलजार थी ll</p><p><br /></p><p>हीना सी महका जाती यह अटारी फिर उस गली l</p><p>याद आ जाती वो मासूम अठखेलियाँ जब कभी ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-655832359348035822022-11-01T10:17:00.001+05:302022-11-01T10:17:34.216+05:30मौन <p>मौन ही वह सबसे सुंदर अहसास था l</p><p>पल जो उसके लबों से होकर गुजरा था ll</p><p><br /></p><p>उफनता सागर भी वो ठहर गया था l</p><p>खुशबु को इसकी जब मैंने छुआ था ll</p><p><br /></p><p>स्पर्श हृदय मन ने किया था जिस मौन को l</p><p>अल्फाज़ आहटें बिखर गयी थी उस पल को ll</p><p><br /></p><p>मौन वाणी पल्लवित सुगंध महका अंबर को l</p><p>आतुर कर गयी थीं छुने उन उड़ते परिंदों को l</p><p><br /></p><p>समेटा इन मौन अक्षरों को सदियों बाद फिर l</p><p>प्रेम कपोल प्रस्फुटित हो गया एक बार फिर ll</p><p><br /></p><p>धूप छाँव सी दस्तक देती किंवदंतियों इन मौनौ की l</p><p>शब्द सार नक्काशी तराशती फिर उन्हीं अहसासों की ll</p><p><br /></p><p>अधूरी रह गयी थी चेतना जिन अल्फाजों की l</p><p>मौन उसकी लिख गयी नयी इबादत जज़्बातों की ll</p><p><br /></p><p>मौन उसकी लिख गयी नयी इबादत जज़्बातों की ll</p><p>मौन उसकी लिख गयी नयी इबादत जज़्बातों की ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-11786476499848507322022-10-24T10:46:00.000+05:302022-10-24T10:46:01.487+05:30दीपावली<p>दीपावली दीपोत्सव सारांश संक्षेप में l</p><p>आहुति आभा से रोशन तम का मंडल ll</p><p><br /></p><p>भोग चौदह वर्षों का कठिन वनवास l</p><p>काल मृत्युंजय रावण का कर संहार ll</p><p><br /></p><p>सुन रघुवर अपनों की आराधना पुकार l</p><p>अवतारी चले आये थामे माता का हाथ ll</p><p><br /></p><p>प्रीत किरण पुंज से चमकते धूमकेतु से l</p><p>शिरोधार्य इस मंगल बेला जन कल्याण ll</p><p><br /></p><p>पिरो लडिया सुन्दर जगमग करते दीपों सी l</p><p>उत्सर्ग कर रहा संसार वैमनस्य अंधेरों की ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-8844331454195606280.post-4365344328649688292022-10-10T12:55:00.003+05:302022-10-10T12:55:48.221+05:30वैतरणी<p>टाँक दिया रूह को उस पीपल की शाखों पर l</p><p>दर्द कभी रिस्ता था जिसकी कोमल डालों से ll</p><p><br /></p><p>सावन में भी पतझड़ बातों से मुरझा गया पीपल l </p><p>सूना हो गया चौराहा उजड़ गया पीपल राहों से ll</p><p><br /></p><p>फिर भी समझा ना सका दिल वैतरणी को l</p><p>गुलाब वो बना था किसी और के आँगन को ll </p><p><br /></p><p>गवाह थी दरिया किनारे बरगद की वो लटें l</p><p>गुजरी थी कई शामें जिसके हिंडोले मोजों में ll</p><p><br /></p><p>बदले बदले रूप वो चाँद नजर क्यूँ आ जाता हैं l </p><p>पुराने खतों नूर उसका ही नजर क्यूँ आ जाता हैं ll</p><p><br /></p><p>संग इसके बीते थे जो कभी हसीन अतरंगी पल l</p><p>टिसन देते आज भी याद आते जब कभी वो पल ll</p>MANOJ KAYALhttp://www.blogger.com/profile/13231334683622272666noreply@blogger.com12