Sunday, February 6, 2022

अकेली रात

कल की वो रात बड़ी अकेली थी l
अक्स भी वो गुमशुदा लापता था ll

दीदार में जिसके ठहरी हुई रातें भी l
खामोशी से ढ़ल सी जाया करती थी ll

अक्सर ख्वाब बन जो आया करता था l
मंजर कल की रात का वो अधूरा सा था ll

आवाज दे पुकारूँ उसे इस आलम में कैसे l
दर्द में डूबे अल्फाजों से कशिश वो दूर थी ll

काश यह रात मुझे भी अपने में समा जाती l
तन्हा करवटों में थोड़ी सी नींद पिरो जाती ll

मगर बारिश की वो करुण भीगी भीगी रुन्दन l
मेघों की वो भयभीत कांपती सी थरथराहट ll

डरा रही थी अधखुली पलकों को ऐसे l
नाता ना जोड़ों इन परायी नींदों से ऐसे ll 

चाँद वो जो अक्सर संग मेरे जगा करता था l
कल रात वो भी बिन सुलायें खो गया था ll

इस बैरंग आसमाँ में रंग जिसके भरा करते थे l
वो गुमनाम अक्स कल रात से गुमशुदा सा था ll

9 comments:

  1. डरा रही थी अधखुली पलकों को ऐसे l
    नाता ना जोड़ों इन परायी नींदों से ऐसे ll
    हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।

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    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  2. कोमल भावों से सजी सुंदर रचना

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    1. आदरणीया अनीता दीदी जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  3. मन को छूती सुंदर रचना ।

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    1. आदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  4. बहुत खूब ...
    अच्छे शेर हैं किसी कहानी जैसे ...

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    1. आदरणीय दिगंबर भाई साहब जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  5. नाता ना जोड़ों इन परायी नींदों से ऐसे हृदयस्पर्शी बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आया ..बहुत अच्छा लगा

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