बारिश की उन बूँदों की भी अपनी कुछ ख्वाइशें थी l
ओस बूँदों सी स्पर्श करुँ उसके गालोँ के तिल पास से ll
मचली थी घटायें भी एक रोज मदहोशी शराब सी l
छू जाऊ बरस संगेमरमर की उस हसीन क़ायनात को ll
पर चुपके से दबे पावँ बयार एक दौड़ी चली आयी l
संग अपने उड़ा बादलों को आसमाँ शून्य कर आयी ll
आवारा हो गयी हसरतें बारिश आते आते इस मोड़ पर l
बिखरा रंग गयी आसमां काले काले काजल की कोण से ll
धुन लगी थी बूँदों को भी इसी उम्र बरस जाने की l
भींगी भींगी रातों में बाँहों के तन से लिपट जाने की ll
आतुर थे छिछोरे बादल भीगने उस बरसात में l
घुँघरू बन सज जाने उन सुने सुने पावँ में ll
सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
बढ़िया लिखा है मनोज साहब। आपको बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteआदरणीय वीरेंद्र भाई जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ।
ReplyDeleteआदरणीय नीतीश भाई जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
बूंदों का बहुत ही सुन्दर मानवीकरण
ReplyDeleteआदरणीया कविता दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
भावों का सम्प्रेषण अच्छा है ।
ReplyDeleteआदरणीया संगीता दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
प्यारी सी मासूम सी ख्वाइशें, बूँदों की
ReplyDeleteआदरणीय गगन जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
मासूम ख्वाहिशों की चाहत कोबाखूबी लिखा है ...
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब और कमाल का है ...
आदरणीय दिगम्बर भाई जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
बहुत खूब , बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय आलोक भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
धुन लगी थी बूँदों को भी इसी उम्र बरस जाने की l
ReplyDeleteभींगी भींगी रातों में बाँहों के तन से लिपट जाने की ll
वाह!!!
बहि ही सुन्दर सृजन।