Friday, January 25, 2013

ढोंगी

ढोंगी मानव हो गया

पाखंड की चादर ओढ़ सो गया

मुख में रखे खुदा का नाम

पर हाथों में सूरा के जाम

उतर मंदिर की जिन्ने

चूमे जिन्ने कोठे की हर शाम

भुला चंदन की खुशबू

भटके गजरे की गली गली

हटा तिलक छाप

सुरमे के रंग बदरंग हो गया

लगे उसे मंदिर मोक्ष का द्वार

पर कोठा लगे जन्नत का द्वार

पहन यह मुखोटा पाखंड का

ढोंगी मानव हो गया









 

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