ढोंगी मानव हो गया
पाखंड की चादर ओढ़ सो गया
मुख में रखे खुदा का नाम
पर हाथों में सूरा के जाम
उतर मंदिर की जिन्ने
चूमे जिन्ने कोठे की हर शाम
भुला चंदन की खुशबू
भटके गजरे की गली गली
हटा तिलक छाप
सुरमे के रंग बदरंग हो गया
लगे उसे मंदिर मोक्ष का द्वार
पर कोठा लगे जन्नत का द्वार
पहन यह मुखोटा पाखंड का
ढोंगी मानव हो गया
पाखंड की चादर ओढ़ सो गया
मुख में रखे खुदा का नाम
पर हाथों में सूरा के जाम
उतर मंदिर की जिन्ने
चूमे जिन्ने कोठे की हर शाम
भुला चंदन की खुशबू
भटके गजरे की गली गली
हटा तिलक छाप
सुरमे के रंग बदरंग हो गया
लगे उसे मंदिर मोक्ष का द्वार
पर कोठा लगे जन्नत का द्वार
पहन यह मुखोटा पाखंड का
ढोंगी मानव हो गया
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