वो ठहराव ही ना मिला जिसका इंतजार था
माना धाराओं का वेग कही शांत तो कही प्रचंड था
पर लहरों के थपेड़ों से टूटते
किनारों का मंजर ही सिर्फ सामने था
हर गुजरते लहमों का इसे बखूबी अंदाज़ था
पर कहने को भी पास अपने
इस जिंदगानी का हिसाब ना था
कभी दरख़्तों में तो कभी पर्वतों में
खो जाने का जूनून जो साथ था
पास इसके भी मगर
बिखरी मंजिलों का सच साथ था
शायद रूह का
आँधियों से लड़ने का हौसला पस्त था
चमक भी वो विलुप्त सी प्रतीत थी
समर बेंधने की कला में जिसे पारंगत हासिल थी
शून्य भँवर का वेग भी
कुछ ऐसा ही गतिमान प्रतिबिंबित सा था
साधना पल, ध्यान भी मानो
रूह से अपनी विरक्त सा था
ठहराव की इस व्यथा में
मानो सृष्टि की संरचना का भी
अपना कुछ अंशदान सा था
कुछ अंशदान सा था
माना धाराओं का वेग कही शांत तो कही प्रचंड था
पर लहरों के थपेड़ों से टूटते
किनारों का मंजर ही सिर्फ सामने था
हर गुजरते लहमों का इसे बखूबी अंदाज़ था
पर कहने को भी पास अपने
इस जिंदगानी का हिसाब ना था
कभी दरख़्तों में तो कभी पर्वतों में
खो जाने का जूनून जो साथ था
पास इसके भी मगर
बिखरी मंजिलों का सच साथ था
शायद रूह का
आँधियों से लड़ने का हौसला पस्त था
चमक भी वो विलुप्त सी प्रतीत थी
समर बेंधने की कला में जिसे पारंगत हासिल थी
शून्य भँवर का वेग भी
कुछ ऐसा ही गतिमान प्रतिबिंबित सा था
साधना पल, ध्यान भी मानो
रूह से अपनी विरक्त सा था
ठहराव की इस व्यथा में
मानो सृष्टि की संरचना का भी
अपना कुछ अंशदान सा था
कुछ अंशदान सा था
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-03-2017) को
ReplyDeleteचक्का योगी का चले-; चर्चामंच 2608
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी
ReplyDeleteरचना संग्लन करने के बहुत बहुत धन्यवाद्
सादर
मनोज