मंजर गुलज़ार हैं तन्हाई में उसकी यादों का ll
कौन कहता हैं मैं तन्हा अकेला हूँ l
हर रोज गुलफाम की क़ुरबत में उससे मिला करता हूँ ll
खत रोज एक नया उसे लिखा करता हूँ l
खबर उसे मिल जाये पतंग बिन डोर उड़ाया करता हूँ ll
हर फरमान मैं उफान लिए हर घूँट छलक जाता हूँ l
पीऊं कैसे जाम में भी अक्स उसका निहार जाता हूँ ll
कितनी हसीन यह सितमगर मोहब्बत हैं l
वो नहीं फिर भी उनकी रूह से भी मोहब्बत हैं ll
तन नहीं मन लगा जिससे किनारा उससे कैसा हो l
ख्यालों से निकल यादों से समझौता कैसे हो ll
सकून मिल रहा जिसकी फ़िज़ों से l
मौसम तन्हाईयों का गुलज़ार फिर कैसे ना हो ll
वाह
ReplyDeleteआदरणीय सुशील जी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
मनोज
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआप अन्य ब्लॉगों पर भी टिप्पणी किया करो।
तभी तो आपके ब्लॉग पर भी लोग कमेंट करने आयेंगे।
आदरणीय शास्त्री जी
Deleteमेरा मार्ग दर्शन करने एव॓ रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया । आपके कहेका अनुसरण अवश्य करूगा ।
आभार
मनोज
कौन कहता हैं मैं तन्हा अकेला हूँ l
ReplyDeleteहर रोज गुलफाम की क़ुरबत में उससे मिला करता हूँ l
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर।
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
मनोज