Thursday, May 8, 2025

बोलियाँ

बोलियाँ मोगरे झूमके वाली वालियाँ फूलों की l

साँझी आयतें अल्फाजों कारीगरी रूहों की ll


खतों विरासत अस्तित्व स्पर्श चाँद स्पंदन की l

महका गयी पतझड़ बसंती सावन फुहारों की ll


मरुधरा चाँदनी गुलमोहर ईद रात सितारों की l

मयूर मन खिला गयी बंद दिल दरवाजों की ll


उलझी उलझी लट्टे केशों पेंचों पतंगों डोरी की l

हौले से कादंबिनी धड़कने बन गयी ख्वाबों की  ll


बातें तितलियों के सुंदर नयन बसेरों सागर की l

ठग गयी आरजूएँ अंजुमन बिस्मिल राहों की ll

Sunday, May 4, 2025

अर्थ

अलसाई सहर पैबंद सरीखी सी कायनात बीच l

कयामत खलल ख्वाबों ख्यालों अफ़सानों बीच ll


धूप अरदास धूनी कौतूहल सी लागत दर्पण नीर l

पुकार हृदय मांझी नृत्य साधना यौवन सागर क्षीर ll


सुस्त लम्हों दरमियाँ आलिंगन महताब मंजर धीर l

वृतांत पर्वतों सा विशाल पिघल चला लावा चीर ll


अस्मत आँचल ओढ़नी सहमी नयनों काजल तीर l

सौदागरी अदाकारा वाणी राहत तारों भरी भीड़ ll


तृप तरुण तर्पण साँझी सुगंध बेला मरुधर बीच l

परिहार परिहास कस्तूरी टटोल भटका मन अधीर ll


रूहानियत रूमानियत अंतर फासले साजों बीच l

अर्थ मौसिकी आधा खोया सा बैचैन करवटों बीच ll

Wednesday, April 2, 2025

संवाद

एक विस्मित सा संवाद था उसकी आयतों कारीगरी में l

केशों गुलाब लिखी जैसे कोई ग़ज़ल थी उसकी अदाकारी में ll


रूह महकी थी जिन अधूरे खत भींगी आँचल साझेदारी में l

नफासत नजाकत लाली शामिल जिसकी रुखसार तरफदारी में ll


काफिर महकी आँखें पेंचों उलझी जिसकी रहदारी में l

उत्कर्ष स्पर्श था उसकी चंदन बिंदी पहेली रंगदारी में ll


दार्शनिक सी उसकी गलियों की वो टेढ़ी मेढ़ी पगडण्डियाँ l

जुस्तजू गुलदस्ता कहानियां पिरोती कर्णफूल आसमानों की ll


इस खामोशी स्पन्दन से गुदगुदा करवटें बदलती आरजूएँ l

तस्वीर नयी सहर रंग गयी बैरंग खत पन्नों रुकी कूँची राहों में ll

Sunday, March 2, 2025

अमोघा

साँझ धूनी चंद्र घटा नीले रक्त आवेग संगम l

कल्पवास लीन बिंदी माथे चंदन तारों घूंघट ll


मंथन तट सुरमई रंग रंगी मुद्रि अनोखी बंधन l

मधुमास रुचिर कंचन काया पूर्णाहुति सुंदर ll


बाँध अर्पण अश्वमेघ मन्नत डोरी धरा तर्पण l

क्षितिज लालिमा कामिनी जोहर अभिनंदन ll


चंचल युगम तृष्णा मरूभूमि त्रिशंकु अम्बर l

मेघों आँखों लुप्त मृगतृष्णा काले सायों अंतर ll


क्षीर वचन मंत्र सूत्र केश धूलि त्रिवेणी संगम l

कायनात सृष्टि अमोघा परिणय पावन संगम ll

Saturday, February 1, 2025

जंग

अर्से बाद आईने नज्म उतराई जंग लग गयी पहलू इन रस्मों को l

संदूक बंद लिहाफों से कतरा कोई बह चला आँखों यादों को ll


नब्ज रज्म रिवायत तहरीर आईने उलझी रह गयी इस तारीख को l

सोंधी सोंधी खोई खुमार इसकी रुला गयी यादों दर्पण आँचल को ll


गर्त गुब्बार ढका माहताब मोहताज हो गया झरोखे बादल को l

ग्रहण दीमक जंग सा डस गया आईने इस गुलजार आँगन को ll


फेहरिस्त ख्वाबों अरमानों धूमिल आईने सेज आसमानों को l

मेघ बूँदों तेजाब टपकती बदरंग करती यादों लिखावट स्याही को ll


फ़ाँकी धूल रूह कहानी को पाया जंग लगी यादों आईने रूहानी को l

जाने कब किश्त किश्त बिक गयी लेखनी पतवार खारे सागर पानी को ll