Wednesday, December 10, 2025

ll अंतिम अरदास ll

स्पर्श सफर रूह ठहरा था जिस जिस्म अंगीकार को l

भस्मीभूत हो गया पंचतत्व कह अलविदा संसार को ll


वात्सल्य छवि अर्पण निखरी थी जिस मातृत्व छाँव को l

ढ़ल चिता राख तर्पण मिल गयी गंगा चरणों धाम को ll


मोह काया दर्पण भूल गया उस परिचित सजी बारात को l

संग कफन जनाजे जब वो निकली सज सबे बारात को ll


अवध दीपावली तोरण सजी थी जिस शामें बहार को l

छोड़ किलकारी आँचल बिसरा गयी बचपन साँझ को ll


अतिरिक्त साँसे पास थी नहीं अंतिम सफर अरदास को l

वरदान अभिषप्त आँसू शान्त खो गये रूठे श्मशान को ll

Sunday, December 7, 2025

परिदृश्य

हैरत हुई ना किश्तों उधार मिली यादों दरारों में l

इल्तिजा ठहरी नहीं चहरे शबनमी बूँदों दरारों में ll


खोई सलवटें सूने आसमाँ तुरपाई गलियारों में l

छुपा गयी गुस्ताखियां आँचल पलकों सायों में ll


सुरमई बादल पनाह काजल निगाह घनेरो में l

कोई रंजिशें पैबंद ठगी अधखुली कपोलों में ll


बिखरे केशों लिपटी लट्टे झुर्रियां दर्पण लहरों में l

तस्वीरें धुंधली बदलती लकीरें हाथों मेहंदी में ll


ख्वाबों ख्यालों परिदृश्य फिराक दीवारों परिधि में l

लकीरें हाथों मिट गयी उलझन भरे अंधियारों में ll

Tuesday, December 2, 2025

एक आवाज

 खो गयी एक आवाज शून्य अंधकार सी कही l

सूखे पत्ते टूटने कगार हरे पेड़ों डाली से कही ll


उलझी पगडण्डियों सा अकेला खड़ा मौन कही l

अजनबी थे लफ्ज़ उस अल्फाज़ मुरीद से कही ll


तराशी चिंतन टकटकी निगाहें मूर्त अधूरी थी कही I

रूह चेतना थी नहीं शतरंज बिछी बाजी सी कही ll


सूखी गर्त रूखी स्याही टूटे कलम नोंक से हर कही l

पुरानी सलवटें कागज लिख ना पायी अरमान कही ll


परछाई साये सी मौन साथ चलती रही कदमों कही l

ढलान ठोकर गहरी समुद्रों उफनती लहरों सी कही ll


डूबी अधूरी बातें चिंतन बादलों पार सूर्यास्त सी कही I

मझधार गुमनामी छोड़ गयी बिखरे थे जज्बात कही ll

Wednesday, November 5, 2025

खण्डित विपाशा

थक गयी आत्मा पत्थरों के संवेदना बिन शून्य शहर को l

अजनबी थी खुद की ही रूह जिस्म को जिस्म रूह को ll


गर्द घूंघट ढाक गयी नज़ारे आसमाँ नन्हें फरिश्ते सितारों को l

ओढ़नी बादलों की बातें भूल गयी पिघल बरस जाने को ll


विडंबना अक्षरः सत्य बदल गयी गजगामिनी हंस चालों को l

वैभव मधुमालिनी कुसुम रसखानी भूल गयी मधुर तानों को ll


अपरिचित सा ठहराव यहां रफ्तार आबोहवा बीच रातों को l

अदृश्य विचलित मन सौदा करता गिन गिन साँस धागों को ll


हाथ छुटा साथ छुटा बचपन लूट गया इन अंध गलियारों को l

बिखर पारिजात शाखा से ढूंढता घोंसला बबूल काँटों को ll


बदरंग दर्पण अतीत ओझल अकेला खड़ा रेतो टीलों जंगल को l

खण्डित विपाशा अनकहे हौले से बदल गयी रूह कुदरत को ll

Thursday, October 16, 2025

अकेला समय

स्पर्श स्पन्दन खामोश अधरों उलझेअधूरे अल्फाजों की l

तस्वीर एक ही उकेरती सूनी सूनी पत्थराई आँखों की ll


पैबंद लगी तुरपाई हुई काश्तकारी रूह इसके सपनों की l

बिनआँसू सुई सी चुभती सीने दिल टूटे अरमानों की ll


समय अकेला समर गहरा संबंध विच्छेद नादान सा l

कटाक्ष बाण चक्रव्यूह रण निगल गये निदान काल सा ll


मुखबिरी व्यथित बदरंग इनके रुदन शब्द आवाजों बीच l

मुनादी कोलाहल बेंध रही छाती कर्णताल ध्वनि धैर्य बीच ll


रोम रोम कर्जदार पाटों की इन बिखरी चट्टानों बीच l

लुप्त हो गयी तरुणी सागर कहीं इसके क्षितिज तीर ll