Friday, July 24, 2020

सकून

वो सकून हैं हर शामों की तसब्बुर का l
मंजर गुलज़ार हैं तन्हाई में उसकी यादों का ll

कौन कहता हैं मैं तन्हा अकेला हूँ l
हर रोज गुलफाम की क़ुरबत में उससे मिला करता हूँ ll

खत रोज एक नया उसे लिखा करता हूँ l
खबर उसे मिल जाये पतंग बिन डोर उड़ाया करता हूँ ll

हर फरमान मैं उफान लिए हर घूँट छलक जाता हूँ l
पीऊं कैसे जाम में भी अक्स उसका निहार जाता हूँ ll

कितनी हसीन यह सितमगर मोहब्बत हैं l
वो नहीं फिर भी उनकी रूह से भी मोहब्बत हैं ll

तन नहीं मन लगा जिससे किनारा उससे कैसा हो l
ख्यालों से निकल यादों से समझौता कैसे हो ll

सकून मिल रहा जिसकी फ़िज़ों से l
मौसम तन्हाईयों का गुलज़ार फिर कैसे ना हो ll

6 comments:

  1. Replies
    1. आदरणीय सुशील जी
      आपका बहुत बहुत शुक्रिया
      आभार
      मनोज

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  2. बहुत सुन्दर।
    आप अन्य ब्लॉगों पर भी टिप्पणी किया करो।
    तभी तो आपके ब्लॉग पर भी लोग कमेंट करने आयेंगे।

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    1. आदरणीय शास्त्री जी
      मेरा मार्ग दर्शन करने एव॓ रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया । आपके कहेका अनुसरण अवश्य करूगा ।

      आभार
      मनोज

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  3. कौन कहता हैं मैं तन्हा अकेला हूँ l
    हर रोज गुलफाम की क़ुरबत में उससे मिला करता हूँ l
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर।

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    1. आदरणीया सुधा दीदी जी
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार
      मनोज

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