Wednesday, April 12, 2017

उम्र कैद

गुनाह मेरे ख्बाबों का कहा था

शरारत भी उनकी मासूमियत भरी थी

पेंच लड़े नयनों के थे

पतंग पर वो दिल की काट गए थे

लावण्य उनके रूप का ना था

फ़िज़ा में बहार उनके चिलमन की थी

गुलाब सी खिलती, इत्र सी महकती, हँसी उनकी

अनजाने में जुर्म ए करवा गयी

आजीवन उम्र कैद की बेड़ियाँ इन हाथों को पहना गयी


इन हाथों को पहना गयी

3 comments:

  1. Replies
    1. कविता जी

      मेरी रचना पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      सादर
      मनोज

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  2. दिलबाग भाई

    मेरी रचना लिंक करने के लिए धन्यवाद

    सादर
    मनोज

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