Sunday, September 3, 2023

सगर

गुजारी थी कई रातें ख्वाबों के सिरहाने तले l

सितारों की आगोश में चाँदनी लिहाफ तले ll



फिर भी तवायफ सी थी ख्वाहिशें धड़कनों की l

राहों टूटे घुँघरू पिरो ना पायी माला साँसों की ll



बंदिशें कौन सी क्यों थी जाने चाँद की पर्दानशी में l 

बेपर्दा जो कर ना पायी पलकों तले थे जो राज छुपे ll



दूरियों के अह्सास में भी जैसे कोई आहट साथ थी l

फुसफुसा रही हवा झोंकों में कुछ तो खास बात थी ll



मिली थी जो कल फिर उसी चौराहे बरगद छाँव तले l

परछाई की उस रूमानी रूह में कोई रूहानी साँझ थी ll



आकार निराकार था उस प्रतिबिंब के दर्पण नजर में l

फिर भी हर अल्फाजों में उसकी ही बात सगर थी ll

8 comments:

  1. वाह...
    अलौकिक प्रेम
    बहुत गजब लिखते हैं आप.

    पधारिये- संस्कृति - विकृति

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    1. आदरणीय भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  2. आकार निराकार था उस
    प्रतिबिंब के दर्पण नजर में l
    फिर भी हर अल्फाजों में
    उसकी ही बात सगर थी ll
    भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति । बहुत सुन्दर सृजन ।

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    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      आपका उत्साहवर्धन ही मेरी कूची के रंगों की सुनहरी धुप की मीठी बारिश हैं, आशीर्वाद की पुँजी के लिए तहे दिल से नमन

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    1. आदरणीय सुशील भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  4. आदरणीया यशोदा दीदी जी
    मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार

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