गुजारी थी कई रातें ख्वाबों के सिरहाने तले l
सितारों की आगोश में चाँदनी लिहाफ तले ll
फिर भी तवायफ सी थी ख्वाहिशें धड़कनों की l
राहों टूटे घुँघरू पिरो ना पायी माला साँसों की ll
बंदिशें कौन सी क्यों थी जाने चाँद की पर्दानशी में l
बेपर्दा जो कर ना पायी पलकों तले थे जो राज छुपे ll
दूरियों के अह्सास में भी जैसे कोई आहट साथ थी l
फुसफुसा रही हवा झोंकों में कुछ तो खास बात थी ll
मिली थी जो कल फिर उसी चौराहे बरगद छाँव तले l
परछाई की उस रूमानी रूह में कोई रूहानी साँझ थी ll
आकार निराकार था उस प्रतिबिंब के दर्पण नजर में l
फिर भी हर अल्फाजों में उसकी ही बात सगर थी ll
वाह...
ReplyDeleteअलौकिक प्रेम
बहुत गजब लिखते हैं आप.
पधारिये- संस्कृति - विकृति
आदरणीय भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
आकार निराकार था उस
ReplyDeleteप्रतिबिंब के दर्पण नजर में l
फिर भी हर अल्फाजों में
उसकी ही बात सगर थी ll
भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति । बहुत सुन्दर सृजन ।
आदरणीया मीना दीदी जी
Deleteआपका उत्साहवर्धन ही मेरी कूची के रंगों की सुनहरी धुप की मीठी बारिश हैं, आशीर्वाद की पुँजी के लिए तहे दिल से नमन
वाह
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
आदरणीया यशोदा दीदी जी
ReplyDeleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार
बहुत सुंदर,
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