Wednesday, December 10, 2025

ll अंतिम अरदास ll

स्पर्श सफर रूह ठहरा था जिस जिस्म अंगीकार को l

भस्मीभूत हो गया पंचतत्व कह अलविदा संसार को ll


वात्सल्य छवि अर्पण निखरी थी जिस मातृत्व छाँव को l

ढ़ल चिता राख तर्पण मिल गयी गंगा चरणों धाम को ll


मोह काया दर्पण भूल गया उस परिचित सजी बारात को l

संग कफन जनाजे जब वो निकली सज सबे बारात को ll


अवध दीपावली तोरण सजी थी जिस शामें बहार को l

छोड़ किलकारी आँचल बिसरा गयी बचपन साँझ को ll


अतिरिक्त साँसे पास थी नहीं अंतिम सफर अरदास को l

वरदान अभिषप्त आँसू शान्त खो गये रूठे श्मशान को ll

6 comments:

  1. बहुत मार्मिक सृजन.

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर अरदास।
    सादर।
    -----
    नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना गुरूवार ११ दिसम्बर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  3. अति सुन्दर सृजन

    ReplyDelete