स्पर्श सफर रूह ठहरा था जिस जिस्म अंगीकार को l
भस्मीभूत हो गया पंचतत्व कह अलविदा संसार को ll
वात्सल्य छवि अर्पण निखरी थी जिस मातृत्व छाँव को l
ढ़ल चिता राख तर्पण मिल गयी गंगा चरणों धाम को ll
मोह काया दर्पण भूल गया उस परिचित सजी बारात को l
संग कफन जनाजे जब वो निकली सज सबे बारात को ll
अवध दीपावली तोरण सजी थी जिस शामें बहार को l
छोड़ किलकारी आँचल बिसरा गयी बचपन साँझ को ll
अतिरिक्त साँसे पास थी नहीं अंतिम सफर अरदास को l
वरदान अभिषप्त आँसू शान्त खो गये रूठे श्मशान को ll
सुंदर
ReplyDeleteबहुत मार्मिक सृजन.
ReplyDeleteसुंदर और मार्मिक
ReplyDeleteबहुत सुंदर अरदास।
ReplyDeleteसादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना गुरूवार ११ दिसम्बर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteअति सुन्दर सृजन
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