Saturday, July 13, 2013

खबर

खबर तेरी इस जहाँ को कहा थी

गुलदस्ते में छिपी बैठी

ज़माने की बेरुखी निहार रही थी

पल ये भी थोड़े थे

हकीक़त से मगर रूबरू थे

कल तलक जिस फूल के चर्चे आम थे

टूटते ही डाली से , सब वीरान थे

फिक्र कहा बेदर्द ज़माने को थी

सचमुच पल दो पल के बाद

जिन्दगी  गुमनाम थी

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