Wednesday, April 20, 2022

कल्पनाशील

उलझी उलझी थी मोहब्बत मेरी उसके दिल की गली गली l
संगेमरमर सी ताज महल बन गयी वो यादों की गली गली ll

खुशनुमा हो जाते थे तरन्नुम के वो कुछ खास से पल l
छत पर जब नजर आ आती थी उसकी एक झलक ll

कसीदें उसके तारूफ में भेजा करते जब आसमाँ साथ में l
मेघों की लड़ियों भी सज जाती उसकी कर्णफूलें शान में ll

कलाई से बंधे धागों सी कोई कशिश थी इन चाहतों के बीच l
हथेलियों पर लिखी कोई इबादत थी जैसे इन लकीरों के बीच ll

करवटों की लिहाफ़ से हो जाती थी करारी तकरार सी l
चाँद जब जब उतर आता था मेरे झरोखे दालान भी ll

बड़ा मीठा सा रूमानी था कल्पनाशील का वो आशिकी मिजाज़ भी l
निभाने दस्तूर ख्यालों से निकल वो चले आते थे ख़्वाबों पास भी ll

अवदान उनकी उस मुस्कान का ही था मेरी उड़ानों के बीच l
जिक्र सिर्फ जिनकी आँखों का ही था मेरी किताबों के बीच ll

Sunday, April 3, 2022

तसव्वुर

संग पानी के रेत दरियाँ की लिपटी क़दमों से ऐसे l
मृगतृष्णा सी हिना सज गयी रेगिस्तान में जैसे ll

आसमाँ भी उतर आया सुन इसके झांझर की झंकार l
मुद्दतों बाद कोई सौगात ले आयी रंगों नूर की बारात ll

कुरेदा था जिसे कभी हथेलियों पर आयतों की तरह l
खुशफहमियाँ उन मौजों की मिल रही खुदा की तरह ll

आतुर कश्ती भी डोली थी कभी छूने इसके साहिल को l
सिमट गयी थी खोई खोई संकुचित लहरें अपने पानी को ll

बेबाक सी कह गयी थी दीवारें उस अंजुमन मजार की l
रुखसत होते ही तेरे हिज्रे बेनकाब हो गयी हिजाब की ll  

तसव्वुर उस चाँद का ओझल हुआ नहीं दिल के बीच l
खाब्बों के दरमियाँ अकेला रह गया इसके सजदे बीच ll