ए नदियाँ अभी ज़रा तुम ठहरो l
आतुर सागर अभी मचल रहा हैं ll
तुम उतावली अधीर सागर संगम को l
सागर व्याकुल लहरों में सिमट आने को ll
अस्तित्व विलुप्त हो जाओगी दरिया तुम l
प्यासा हैं सागर कंठ तृप्त इसे कर जाने दो ll
प्रवाह में प्रचंड आवेग लिए सागर से l
तेरी शान्त प्रकृति कुरूप होने ना दो ll
खुमार सागर प्रलय मदहोशी का छाया हैं l
वही तेरी लालिमा मंजर सकून का साया हैं ll
साँझ बेला जब सागर करीब इतराएगी l
हौले से पानी तेरी कानों फुसफुसाएगी ll
बह चली आना बना अपने आँचल को पतवार l
दामन तेरा बन निखर आयेगा जैसे संगम द्धार ll
कुछ पल को थाम ले नदियाँ तेरी रफ़्तार l
लौट आने दो सागर को भी तट के पास ll