ध्वंश हो गयी ध्वनि बेला
कुदरत के नए तांडव गांडीव से आज
अभिलेख ऐसा लिखा मानव ने
कायनात अपनी ही रूह से महरूम होती जाय
प्रलय काल बन गयी सम्पूर्ण सृष्टि
विलुप्त हो रहे सारे नैसगर्गिक भाव
वरदान थी जो प्रकृति अब तलक
दफ़न कर नए उत्थान की बात
अभिशाप नरसंहार बेरहम बनती जाय
अपने अभिमान गुरुर में भूल मर्यादा रेखा को
लहूलुहान छलनी कर सीना सृजन दाता को
लिख दिया मानव कुंठा ने नया विपत्ति अध्याय
रूठ गयी कुदरत अपनी ही बेमिशाल रचना के
बिगड़ते बिखरते अजब गजब पैमानों से आज
नाग बन डस गये मानव को
उसके ही विनाशकारी हथियार आय
लग गया ग्रहण सम्पूर्ण सृष्टि पर
कायनात के इन पूर्णविरामों से आज
कायनात के इन पूर्णविरामों से आज
कुदरत के नए तांडव गांडीव से आज
अभिलेख ऐसा लिखा मानव ने
कायनात अपनी ही रूह से महरूम होती जाय
प्रलय काल बन गयी सम्पूर्ण सृष्टि
विलुप्त हो रहे सारे नैसगर्गिक भाव
वरदान थी जो प्रकृति अब तलक
दफ़न कर नए उत्थान की बात
अभिशाप नरसंहार बेरहम बनती जाय
अपने अभिमान गुरुर में भूल मर्यादा रेखा को
लहूलुहान छलनी कर सीना सृजन दाता को
लिख दिया मानव कुंठा ने नया विपत्ति अध्याय
रूठ गयी कुदरत अपनी ही बेमिशाल रचना के
बिगड़ते बिखरते अजब गजब पैमानों से आज
नाग बन डस गये मानव को
उसके ही विनाशकारी हथियार आय
लग गया ग्रहण सम्पूर्ण सृष्टि पर
कायनात के इन पूर्णविरामों से आज
कायनात के इन पूर्णविरामों से आज