Monday, May 1, 2023

आलाप

सुन सावन के पतझड़ की रागिनी आलाप l

ख़त लिख भेजे बारिश की बूँदों ने दिल के साथ ll


उलझे उलझे केशे भीगे भीगे आँचल की करताल l

मानों दो अलग अलग राहें ढ़लने एक साँचे तैयार ll


ग़ज़ल जुगलबंदी के साज झांझर भी थिरके नाच l

अर्ध चाँद और भी निखर आया सुन बारिश की ताल ll


ताबीज बनी थी जो आयतें उस शरद पूनम की रात l

कर अधर अंश मौन महका गयी अश्वगंधा बयार ll


शरारतों की बगावत थी वो रूमानी साँझ l

शहनाई धुन घुल गयी चूडियों की बारात ll


काश थम जाती वो करवटें बदलती साँस l

मिल जाती दो लहरें एक संगम तट समाय ll


रूह से रूह का था यह रूहानी अहसास l

मौसीक़ी से जुदा ना था बारिश का अंदाज ll


सुन सावन के पतझड़ की रागिनी आलाप l

ख़त लिख भेजे बारिश की बूँदों ने दिल के साथ ll

Sunday, April 2, 2023

चेतना

उन्मुक्त परवाज भरता अभिव्यक्ति सार्गर्भित विचार  l 

अवहेलना व्याख्यान अविरल तुष्टीकरण करते निदान ll


निंदक निंदा भागीदार खोले ऐसे अद्भुत द्वार l

द्रुतगति सींचे नीव नवनिर्माण के साँचे द्वार ll


बबूल झाड़ियां मरुधरा नतमस्तक नील आकाश l

व्यथित पीड़ा खोज लायी मृगतृष्णा नव अवतार ll


मेरुदंड हिमशिखर बाज सी पैनी चाणक्य धुरंधर बात l

शत्रु सहभागी सूत्र पिरो दिया दशों दिशा नया आयाम ll


छोर क्षितिज संरचना गणना आदित्य के वरदान l

भूमिका महत्ता रोशनी संस्कृति विवेचन विचार ll


अध्याय आधार गतिशील प्रतिपल शिक्षा के संस्कार l

विश्वस्वरुप आधिपत्य संजो रहा एक नया इतिहास ll


सागर सरहदें मंथन निरंतर चेतन निर्माण चिंतन l

ध्वजा शंखनाद उद्घोष धरा उत्तम संगम तर्पण ll


पृष्ठभूमि रचित सृजन भूमिका अभिलाषा ज्ञान दान l

प्रस्फुटित अंकुर गुलाब महका रहा ब्रह्मांड दर्श ज्ञान ll

Monday, March 6, 2023

फागुन की थाप

रंगों की प्रीत ने घोली हीना सी ऐसी मदमाती सुगंध चाल में l

केशों में गुँथी वेणी भी थिरक उठी इसके ही रंगों साज में ll


चंद्र शून्य भी भींग इसकी  बैजन्ती के कर्ण ताल में l

लहरा रही कुदरत प्यासे मरुधर मृगतृष्णा ताल में ll


इन्द्रधनुषी रंग बिखराती लाली बिंदी माथे सजी l

बाँसुरी सी बजा रही समंदर ख्यालों अरमान में ll


खनखन करती चूडिय़ां सम्भाल रही ओढ़नी डोर साथ में l

राग सरगम बरस रही इनके रंगें इशारों छुपी जो साथ में ll


चढी खुमारी रंगों की ऐसी फागुन के फाग में l

चाँद भी रंग आया डफली की मीठी थाप में ll


मुरीद अधर रंग सहेजे जिस कोकिल कंठी राग के l

रंग गयी चुपके से वो मुझे अपने ही रंगों रुखसार में ll


गुलाल गुलाब के बिखरते रंगों होली जज्बात में l

सांवला रंग भी निखर आया साँसों के रंगों रास में ll

Friday, February 17, 2023

उलझन

उलझन एक साँसों बीच चाँद क्यों अधूरा सितारों बीच l

मेहरम हवाओं आँचल बीच दाग क्यों चाँद माथे बीच ll


फलसफा कुदरत का ताबीज बन डोरे डाले आँखों बीच l

अनोखा स्वांग रचा रखा कायनात ने चाँद के माथे बीच ll


कभी अमावस की परछाई कभी ग्रहण की गहराई बीच l

नज़र कजरी बन आती ठहरी धड़कनों की अर्ध चाँद बीच ll


अलाव सी तपती मृगतृष्णा का आलाप झांझर बीच l

सूखौ रही कल कल करती नदियां संगीत सागर बीच ll


परखी बादलों ने जौहरी सी पनघट काया बदलती रूह बीच l

तस्वीर इस मंजर की इनायतॅ आयतें लिख रही चाँद बीच ll


बेचैन अधीर मन गुमशुदा करवट बदलती रातों बीच l

पूछ रहा खुद से क्यों खो गया मेरा चाँद बदरी बीच ll

Thursday, February 2, 2023

छेड़खानियां

सप्तरंगी तरंगें थिरकती जिन बाँसुरी शहनाई की धुन l 

निजामते पुकार लायी फिर उन छेड़खानियां की रूह ll


आँधियों से जिसकी जर्रा जर्रा महका करता था कभी l

संवरने लगी वो आज फिर सुन दिल दस्तको॔ की धुन ll


सिलसिला दो हसीन ख़यालात खिलते गुलाब जज्बातों का l

एक मौन स्वीकृति खुशमिजाज आलिंगन करती हवाओं का ll


अर्ज़ बड़ा ही मासूम था इसकी उन अतरंगी अदाओं में l

तर्ज़ में जिसकी सितारें थे हर एक दिल्लगी इशारे में ll


मिलन गुलदस्ता ख्वाब बना था जिस खत का कभी l

अधूरा वो खत आज भी पड़ा था उसी किताब बीच ll


तराश नियति ने सजाये दो अलग अलग गुलदानों में l

मुरझा गये गुलाब दोनों जुदा हो अपनी ही साँसों से ll


आज फिर अचानक खिलखिलायी जो यादों की सुनहरी धूप l

छू गयी फिर से उन नादान छेड़खानीयों की मीठी सी धुन ll


Sunday, January 8, 2023

गुस्ताखियाँ

बेईमान लम्हों की हसीन नादान गुस्ताखियाँ l

कर गयी ऐसी मीठी मीठी दखलअन्दाज़िया ll


शरमा तितली सी वो कमसिन सी पंखुड़ियां l

रंग गयी गुलमोहर उस चाँद की परछाइयाँ ll


सुनहरी ढलती साँझ की मधुर लालिमा जिसकी l

संदेशा गुनगुना जाती यादों सिमटती रातों का ll


अक्सर दस्तक देती चिलमन की वो शोखियाँ l

जुड़ी थी जिससे कुछ अनजाने पलों की दोस्तियाँ ll


मेहरबाँ थी अजनबी राहें भटकती मृगतृष्णा बोलियाँ l

बन्ध गयी थी जिनसे इस अनछुए अकेलेपन की डोरियाँ ll


स्पंदन एक मखमली सा था इनकी फ़िज़ाओं हवाओं में l

इत्र सा महका जाती आल्हादित मन अपनी गुस्ताखियों से ll