प्रतिलिपि लिखी जिन गुमनाम गुलजारों की l
मिली वो इस अंजुमन के प्यासे रहदारों सी ll
सूनी दीवारें सजी थी किसी दुल्हन सेज सी l
कुरबत जिसके उतर आयी थी महताब बारात की ll
मशरूफ थी रूह इस कदर इनायतें रैना इंतजार में l
शुरूर नूर लिहाज का गुम हो गया इस कायनात में ll
बिसर अलंकार शब्दों मखमली ताबीर का l
रंग गया अम्बर स्वप्निल रंगदार घटाओं का ll
अहसास फूलों सी नाजुक इन पंखुड़ियों का l
तितलियाँ उड़ा गया इन पलकों नींद का ll
मीठी सी जिरह इसकी जेहन गहराई में l
लिखती हर पल नयी इबादत गुमनामी में ll
प्रतिलिपि लिखी जिन गुमनाम गुलजारों की l
मिली वो इस अंजुमन के प्यासे रहदारों सी ll