Monday, July 26, 2010

मेरे बच्चे

फक्र है नाज है

नहीं है अहंकार

मेरे बच्चे है

मेरे सर के ताज

मगरूर नहीं खुश हूँ

कुदरत ने दिए

दो छोटे से फूल मुझे उपहार

दिखे बचपन इन में मेरा अपना

पढ़ा लिखा बनाना है इनको अच्छा इंसान

गरूर है ये मेरा

मैं हूँ इनका जन्मदातार

आसरा

इस उम्र अब नए शहर क्या पहचान मिलेगी

काटे नहीं जिन्दगी कटेगी

आसरा है बस एक

यादों के सहारे

तारे गिन गिन राते कटेगी

दौर यह अकेलेपन का भी गुजर जायेगा

अंत समय कुदरत जब गले लगा लेगी

वर्षा रानी

छम छम बरसा पानी

फिर आयी वर्षा रानी

छाई सावन की हरयाली

उमड़ आयी मौजो की मस्ती

निकल आये सागर से मोती

कूके पपहिया नाचे मोर

छाई ऐसी घटा निराली

छम छमा छम बरसे पानी

फिर आयी वर्षा रानी

Sunday, July 25, 2010

दूर

संभल पाती सहज पाती जिन्दगी

दबे पावँ ख़ामोशी से

चली आयी एक खबर

आहिस्ते से दी दिल पे दस्तक

मुसाफिर तेरी मंजिल है अभी दूर

मत बुन सपने आशियाँ के यहाँ

जाना है तुझको बहुत दूर

जाना है बहुत दूर

नया बसेरा

अलविदा कह चल पड़े

एक नयी जगह

एक नया आशियाँ बसाने

परिंदे उड़ चले

बसेरा था सुन्दर वही

गुजरा था बचपन जहा कभी

पर नियति ने लिखा था कुछ ओर

तोड़ पिंजरा उड़ गए परिंदे

नए बसेरे की ओर

शहर

था शहर छोटा सा

थी एक छोटी सी पहचान

बसे जो बड़े शहर को जाके

घिर गयी अजनबियों की बाड़

मिली नहीं वो छोटे शहर सी बात

गुम हो गयी खुद की भी पहचान

रहा नहीं वो अब वो मुकाम

छोटे शहर में जो थी ख़ास

था शहर छोटा सा

छोटी सी थी पहचान

उजाला

सूर्य तपे कहे

मैं हु वो दीपक

जिससे फैले जग में उजाला

मेरी किरणों से उज्जवल बने सबेरा

मेरे सुप्रकाश से मिले

ह़र दिन एक नया सबेरा

खुद जलु खुद तपू

पर रोशन करू जहान को

ताकि ना फैले अंधियारा

Friday, July 23, 2010

अकेली

इतनी अकेली क्यों है जिन्दगी

है किसका इन्तजार जिन्दगी

खोई खोई है राहे

सहमी सहमी है साँसे

है कैसा ये सूनापन

है कैसी ये विरानगी

क्यों इतनी अकेली है जिन्दगी

है किसीका इन्तजार जिन्दगी

उलझन

उलझन में उलझ गई उलझन

ऐसी उलझी उलझन

सुलझन से भी सुलझ ना पायी उलझन

इस उलझन और सुलझन से आ गए चक्कर

खा खा के चक्कर

बन गए घनचक्कर

पर सुलझ ना पायी उलझन

उफ़ कितनी विकराल थी उलझन

जितनी सुलझाओ उतनी उलझ जाती उलझन

खाली किताब

खाली है दिल की किताब

सीखा दो प्यार का पाठ

लहू को स्याही बना

हर पन्नो पे लिख देंगे

आप का ही नाम

अधूरी रहे नहीं दिल की किताब

आप के साथ की हमको है दरकार

आप जो पढ़ाओगे पाठ

सबक वो जीवन भर रहेगा याद

तरस करो इस अनपढ़ पर आप

फ़ौरन चली आओ पढ़ाने प्यार का पाठ

थामे खाली किताब

कर रहे है आप का ही इन्तजार

कागज़ की नाव

छोटी सी कागज़ की नाव

पानी की लहरों पे अटखेलिया कर

मन को लुभा रही नाव

बहते बहते गिल्ली हो

पानी में समा गई नाव

हर्षित मन डूब गया

देख प्यारी नाव का ये हाल

छोटी सी कागज़ की नाव

Monday, July 19, 2010

थोडा सा प्यार

थोडा सा प्यार हो तो

ढेर सारी जीवन में मिठास हो

छोटी छोटी तकरारों में

प्यार की खुशबू का अहसास हो

अगर ऐसा हो जाये तो

ना कभी कोई तकरार हो

जीवन बन जाये स्वर्ग

इससे हसीन ओर क्या खाब्ब हो

रुसवा

जज्बातों का सागर उमड़ पड़ा

नयनों से सावन छलक पड़ा

रुसवा उन्होंने जो हमको किया

तन्हा हमें छोड़ दिया

खत्म मानो जिन्दगी हो गयी

जिनसे की मोहब्बत

बेवफाई से उनकी दिल टूट गया

जज्बातों का सागर उमड़ पड़ा

नयनों से सावन छलक पड़ा

रूह

जिस्म से रूह तक काँप उठी

उनकी जो कोई खबर ना आयी

दुआ खुदा से करते रहे

मन्नते सारी सारी रात मांगते रहे

वो हो सलामत

खबर बस ये हमको मिल जाये

चैन दिल को आ जाये

सकून रूह को मिल जाये

पूजा उन्हें खुदा से ज्यादा

समर्पण कर दिया

उनके नाम जीवन ये सारा

आराधना में उनकी

लुटा दिया प्रेम रस सारा

खबर उनकी ना आये जब कोई

काँप जाती है जिस्म से रूह तक सारी

Sunday, July 18, 2010

बिडम्बना

परेशान नहीं हैरान हु

देख इन रीती नियमों को

अन्धविश्वास में जकड़ी जिन्दगी

गुलाम बन गई सामाजिक कुरित्यों की

जंजीरे कब टूटेगी

दासता से मुक्ति कब मिलेगी

पर बिडम्बना है यही

आज भी मानव है इसी का आदि

देख इस दुर्दशा को

परेशान नहीं हैरान हु में

शून्य

टकटकी लगाए आसमां निहारता रहा

शून्य चेतना में विचरता रहा

अपनी जिन्दगी के ह़र पल को तलाशता रहा

कुदरत ने जिन्दगी के पन्ने कुछ ऐसे लिखे

खाली पन्नो के सिवा कुछ ओर नज़र नहीं आये

जिन्दगी अन्धकार में डूबी नज़र आये

चाँद का शरमाना

देखा है हमने चाँद को शरमाते हुए

खुद को बादलों में छुपाते हुए

नज़र ना लग जाये किसीकी

काला टिका लगाए हुए

देखा है हमने चाँद को मुस्कराते हुए

सितारों के संग खिलखिलाते हुए

छिप छिप चाँदनी बिखराते हुए

देखा है हमने चाँद को शरमाते हुए

खुली बाहें

बंद है राहे

खुली है बाहें

दामन यू छुड़ा ना पाओगे

दूर हमसे जा ना पाओगे

मंजिल है हम आपकी

हमसे नजरे चुरा ना पाओगे

लौट के आना है जब यही

क्यों ना फिर बाहों में चले आओ

Sunday, July 4, 2010

हसीन दुनिया

ख्याल हसीन है

दुनिया तभी रंगीन है

खेल रहा मन सितारों के साथ

पर कह न रहा दिल की बात

सिर्फ एक चाँद की खातिर

कैसे रुस्बा कर दूँ इतने सितारों को

जिन्दगी इन्ही से तो रंगीन है

तभी तो दुनिया हसीन है

हसरतें

हसरतें है बड़ी

मंजिले हो दूर ही सही

ख्वाहिसे होगी ना कम

डगर हो चाहे काँटो से भरी

अरमानों की आरजू है यही

जिन्दगी भी छोटी पड़ जाये

करते फरमाईसे पूरी

फिर भी इस छोटे से दिल की

हसरतें है बड़ी

Saturday, July 3, 2010

पतंग

पतंग का खेल हो गया खत्म

ऊँची उड़ रही थी पतंग

फंसा दी किसी ने उसमे अपनी पतंग

नाजुक हाथों में पकड़ चरखी

सुन्दर बाला उड़ा रही थी पतंग

पेंच उसने ऐसा लगाया

दिल हमारा उस पे आया

हम निहारते रह गए उसको

वो काट ले गयी हमारी पतंग

साथ ही कट गयी दिल की पतंग

पतंग का खेल हो गया खत्म

जगह

काश ऐसी कोई जगह होती

नजरे कोई घुर नहीं रही होती

उस पल को साथ अपना होता

पर मिलते कैसे

चाँद या तारे कोई तू घुर रहे होते

बीते लहमे

यादों को कैद करने का अनुभव सुखद होता है

बीते लहमो से रूबरू होना रोमांचित करता है

इन्ही लहमो में कुछ पल ख़ास बन जाते है

जिन्दगी के ह़र मोड़ पे जो बार बार याद आते है