Monday, December 24, 2018

यादों की अलमारी

कुछ यादें नयी सुहानी

कुछ यादें पुरानी कहानी

सहेज लूँ

किताब बना लूँ

खोलू जब यादों की अलमारी

छलक आये नयना

बिखरने लगे यादें जुबानी

रंगों की बरसात में

महक उठे बगीया सारी

सँजोयी हुई वो यादें

कुछ नादानी कुछ आपबीती

कुछ मधुर गीतों से

कुछ बेसुरे तानों से सजी

खोलू फ़िर वो हृदय राज

गूँज उठे यादों की अलमारी

गूँज उठे यादों की अलमारी 

Thursday, December 6, 2018

आत्म मंथन

मस्तिष्क शून्य चेतना लुप्त

रूह नदारद ख़ुदा विचारत

जग मिथ्या मृगतृष्णा बिसारत

भटकत मन उद्वेगिन नयन

भाव करत द्वन्द चित करत सुमिरन

बिखरत हर भँवर बरसत लहू रंग

बिमुख होत चलत अशांत तन

काल निशा करत फ़िरत भ्रमर

लगत ग्रहण अस्त होवत जाय दिवाकर

समय प्रहर करत तांडव

विचलित होय तरुण राग फ़िरत जाय

करुण रास गला रुँधत जाय

ठगत जाय छलत जाय

आत्म मंथन जौहर बलि चढ़त जाय

जौहर बलि चढ़त जाय

Wednesday, December 5, 2018

गूँगी

सब कुछ हैं पास फ़िर भी अकेला हूँ

जिंदगी की भीड़ में तन्हा खड़ा हूँ

आँसू भी अब तो लगे पराये से हैं

रूह भी जिस्म से जैसे जुदा जुदा हैं

हाथों की लकीरें अधूरी अधूरी सी हैं

किस्मत मानो जैसे गहरी निंद्रा सोई हैं

साज़िश ना जाने कौन सी छिपी हैं

हर मुक़म्मल प्रार्थना भी मानों अधूरी सी हैं

शायद खुदगर्ज़ बन खुदा भी गूँगी बन सोई हैं

गूँगी बन सोई हैं

दुहाई

खुदगर्ज़ हैं अगर तू ए ख़ुदा

तो मैं भी अधूरे सपनों की ताबीर लिए खड़ा हूँ

जंग छिड़ी हैं आज हम दोनों बीच

क्या फ़र्क पड़ता हैं

किस्मत जो तूने लिखी नहीं

फ़िर भी अधूरी हाथों की लकीरें कर्म से पीछे हटती नहीं

मायूस हूँ मैं ए ख़ुदा

पर लाचार नहीं

जीत आज तू मुझसे सकता नहीं

आगे बढ़ते मेरे कदमों को रोक सकता नहीं

स्वाभिमान की पराकाष्ठा आज तेरे अहंकार से टकराई हैं

देख मेरे बुलंद हौसलों को

खड़ा हो जा तू भी मेरे संग

वक़्त भी आज दे रहा यह दुहाई हैं

दे रहा यह दुहाई हैं