Tuesday, February 22, 2022

मोड़

उन अनछुए लावण्य लम्हों का जिक्र जब जब चला l
साँसे अनजानी थी धड़कनों से भ्रम सत्य हो चला ll

गुलदस्ते एक किनारे पे बैठा था पल सिरहाने से l
पतझड़ सा मौसम दस्तक दे रहा जैसे सावन में ll

धागे बिन अधूरी थी पर मोतियों की वो माला l
पिरो गुँथी नहीं जिसमें इसकी शबनमी काया ll

खोई स्मृतियों झाँक रही घूंघट के उन दौरों से l
पानी नहीं था जब बादलों की उफनती मौजों में ll

प्यासे प्यासे रुंधे कंठ आतुर थे तर जाने को l
मदिरालय दूर खड़ी बुला रही पास आने को ll

लकीरें खिंची थी दोनों ने दहलीज के दोनों छोरों पर l
हौले बिसरा गया मिलन साँसों का धड़कन मोड़ पर ll

हौले बिसरा गया मिलन साँसों का धड़कन मोड़ पर l
हौले बिसरा गया मिलन साँसों का धड़कन मोड़ पर ll

Thursday, February 17, 2022

एक चाँद

हर रात खुली आँखों में जग जग के सोया करता हूँ l
एक चाँद के दीदार को पलकें खुली रखा करता हूँ ll

परिणय था पुतलियों का आसमाँ के जिस डगर से l
नयनों के तीर से घायल था ऐ परिंदा उस पनघट पर ll

तराशा जिस तरकश को हसीन ख्वाबों नजारों में l
परिणति हुई उसकी ढलती स्याह आधी रातों में ll

दृष्टि को लग गया मानो चंद्र ग्रहण सा कोई l
सृष्टि में जैसे दूसरा कमल और ना हो कहीं ll

मुस्तकबिल मेरा वाकिफ था इसकी भँवर गहराई से ll
तलाशता फिरा मुकाम फिर भी इसकी अँधेरी सच्चाई में l

परिचय जब हुआ पलकों का आँखों की उचटती नींदों से l
परिचित तब ही हुआ इसके दर्द भरे गुमनाम ठिकानों से ll

सम्भाल रखा हैं अहसान इन हसीं ख्यालातों के l
एहसास ताकि जिंदा रहे इन पलकों मुलाकातों के ll

Saturday, February 12, 2022

तस्दीक

जिंदगी ने भी कल तोहमत लगाई थी l
संभाली नहीं आरज़ुएँ मुद्दतों से मैंने कई ll

गिनी थी कल इसने मेरे साँसों की माला l
बड़ी बदरंग सी थी इनमे कुछ की काया ll

कुछ रोज पहले रंग भरे दिल की गहराइयों ने l
रंगी थी तस्वीर जिस इश्कों नूर ए चाँद की ll

धड़कनों में डूबी अपनी जिस कूची परछाई से l
पर कल रात वो क्यों नज़र आयी अर्ध चाँद सी ll

थम गयी रफ़्तार शायद मेरे अरमानों की l
राख हो गयी धुंआ मेरे जलते अंगारों की ll

तस्दीक यही हैं मेरी खुद से रुस्वाई का l
हमराज़ कोई बना नहीं मेरी परछाईं का ll

हमराज़ कोई बना नहीं मेरी परछाईं का l
हमराज़ कोई बना नहीं मेरी परछाईं का ll

Sunday, February 6, 2022

अकेली रात

कल की वो रात बड़ी अकेली थी l
अक्स भी वो गुमशुदा लापता था ll

दीदार में जिसके ठहरी हुई रातें भी l
खामोशी से ढ़ल सी जाया करती थी ll

अक्सर ख्वाब बन जो आया करता था l
मंजर कल की रात का वो अधूरा सा था ll

आवाज दे पुकारूँ उसे इस आलम में कैसे l
दर्द में डूबे अल्फाजों से कशिश वो दूर थी ll

काश यह रात मुझे भी अपने में समा जाती l
तन्हा करवटों में थोड़ी सी नींद पिरो जाती ll

मगर बारिश की वो करुण भीगी भीगी रुन्दन l
मेघों की वो भयभीत कांपती सी थरथराहट ll

डरा रही थी अधखुली पलकों को ऐसे l
नाता ना जोड़ों इन परायी नींदों से ऐसे ll 

चाँद वो जो अक्सर संग मेरे जगा करता था l
कल रात वो भी बिन सुलायें खो गया था ll

इस बैरंग आसमाँ में रंग जिसके भरा करते थे l
वो गुमनाम अक्स कल रात से गुमशुदा सा था ll

Wednesday, February 2, 2022

दिलकशी

अहसास उन मीठी मीठी यादों लम्हों का l 
श्रृंगार में रचे ढले हसीन सुरीले तरानों का ll

काफ़िला ले आया संग अपने एक बार फिर ये l
रंगने कारवाँ यादों की मौशिकी महफ़िलों का ये ll 

नज़र उतारू हर एक उन याद पायदानों की l
मरुधर संगम होता इनका जिस चिलमन पर ll

परछाइयाँ रूह सायों में लिपटी बेजुबान सी l
हर कदम जुदा यादों से होती जिस एक मोड़ पर ll 

अविस्मरणीय स्मृति ग्रंथ पल पल छलके l
इनके कण कण से अमृत सागर बूँदों सी ll

संकोच कुछ ऐसा यादों की इन तालीम में l
पलकें झुका कहती सिर्फ आँखों पुतलियों से ll 

मीठे दर्द सा फरमान इन अकेली तन्हा यादों में l 
फेहरिस्त लिखता जैसे अर्ध चाँद ढलती रातों में ll

जब जब आयी यादें बरसती सी मरुधर अंजुमन में l
साँसों को साँसों से जोड़ आयी इसके पहलू दामन से ll

डुबों इस मरुधर को मीठी यादों की सौगात बना l 
ताबूतों को भी दिलकशी में जीना सीखा आयी ये ll