Wednesday, July 9, 2014

दास्ताँ

दास्ताँ अरमानों की है

बुनते बिखरते सपनों की है

पर लगाके उड़ते अफसानों की है

वबंडर की आँधी में

छू ना पाये अंबर

दास्ताँ ऐसे अरमानों की है

ख्यालों की कवायद में

बेसुध रहने की

दास्ताँ ऐसे बुनते बिखरते सपनों की है

मीठे अहसास की

दर्द ए जूनून बन जाने की

दास्ताँ ऐसे अफसानों की है

दास्ताँ अरमानों की है

Thursday, July 3, 2014

वो दिन

कितना हसीन वो दिन था

परिणय उत्सव माहौल था

शहनाई की धुन

सज रहा मंगल गान था

वरण करने चाँदनी को

चाँद

सितारों की बारात ले आया था

अंगीकार कर उस सृष्टि रचना को

जीवन अर्धांगनी बना लाया था

बांधने आशीर्वाद का समां

उस मंजर

खुद खुदा भी साक्षी बन आया था

कितना हसीन वो दिन था