पढ़ूँ कैसे उस दिल को
जिसकी हर धड़कनों से
शबनमी आँसू लहू बन रहे है
रंजो गम की स्याही में लिपटी
जिस इबादत ने
रूप बदल डाले
अस्तित्व बदल डाले
उस खारे समंदर को
मीठी सरिता बनाऊ कैसे
रूठे रूठे बेकाबू जज्बातों को
रोशनी का दर्पण दिखलाऊ कैसे
ना कोई चाहत
ना कोई अरमान
टूटे बिखरे इन अरमानों से
प्रेम की माला पुनः गुंथु कैसे
पढ़ूँ फिर कैसे
नया काव्य लिखू फिर कैसे
आस जिसकी छूट गयी
डोर जिसकी टूट गयी
सपनों की उम्मीद जगाऊँ
उसमें फिर कैसे
जगाऊँ फिर कैसे
जिसकी हर धड़कनों से
शबनमी आँसू लहू बन रहे है
रंजो गम की स्याही में लिपटी
जिस इबादत ने
रूप बदल डाले
अस्तित्व बदल डाले
उस खारे समंदर को
मीठी सरिता बनाऊ कैसे
रूठे रूठे बेकाबू जज्बातों को
रोशनी का दर्पण दिखलाऊ कैसे
ना कोई चाहत
ना कोई अरमान
टूटे बिखरे इन अरमानों से
प्रेम की माला पुनः गुंथु कैसे
पढ़ूँ फिर कैसे
नया काव्य लिखू फिर कैसे
आस जिसकी छूट गयी
डोर जिसकी टूट गयी
सपनों की उम्मीद जगाऊँ
उसमें फिर कैसे
जगाऊँ फिर कैसे