Sunday, January 17, 2021

सिफ़ारिश

माना बंदिशे हज़ारों हैं दिल की राहों में l
कुछ और नहीं तो खाब्बों में आ जाया करो ll

ख्यालों की गुलाबी घटाओं में रंग जाओ ऐसे l
संदेशों में मचल रहा हो कोई नादान समंदर जैसे ll 

शहद सी मिठास घुली धुन बन उतर आओ ऐसे l
साज़ सा पिरो लूँ साँसों की इन सरगम में ऐसे ll

सँवार लूँ सपनों की इस अनछुई जागीर को वैसे l
पनाह मिली हो उलझे धागों की कमान को जैसे ll

चाँद सी अनबुझ पहेली बने इन रिश्तों में l
तारों से इशारों में हौले से पैगाम यह कह दो ll

ढलती साँझ सा हसीन इकरार हो l
करार अपना सबसे बेमिसाल हो ll

सिफ़ारिश कर दो अपनी अतरंगी साँसों से ऐसे l
धड़के सिर्फ मेरी रूह की आरज़ू बन जाये ऐसे ll

धड़के सिर्फ मेरी रूह की आरज़ू बन जाये ऐसे l
धड़के सिर्फ मेरी रूह की आरज़ू बन जाये ऐसे ll

Friday, January 1, 2021

परछाई

हमें तो उस परछाई से मोहब्बत हो गयी I
वहम जिसका दिल में लिए हुए जिन्दा थे II

अजनबी सी चाहत थी यह या कुछ और I
जो भी थी कशिश यह थी दिल की और II

अनोखा सा था फ़साना इस इश्क़ का I
अफ़साना था ही इसका बड़ा बेजोड़ II

दीवानों सा आलम था हमारे फ़ितूर में I
बेकरार बावला था दिल उसके सुरूर में II

शोखियों थी चुलबुली सी मस्ती थी I
उस परछाई में मानो रूह की बस्ती थी II

कायनात के लिबास में मिल जाती वो हर ओर I
भटक रही संग मेरे ऐसे बंधी जैसे इससे कोई डोर II

दिल्लगी लगी जब वहम से इस कदर मनमोह I
लाजमी थी मोहब्बत फिर परछाई से कैसे ना हो II

खाब्बों की लकीरों में ख्वाईसों के जो रंग उकेरे थे I
परछाई बन वो ही हमारे दिल से रूबरू हो चले थे II

खुद से खुद हम इस कदर मिल गए I
परछाई के साये में दिल को भूल गए II  

कुछ और नहीं तन्हाईओं में जिन्दा रहने को I 
अनजाने में परछाई से ही मोहब्बत कर बैठे II