Saturday, December 29, 2012

दामिनी का बलिदान

लड़ गयी दामिनी मौत से

पर हार गयी साँसों की डोर से

खामोश हो चिरनिंद्रा सो गयी

चिथड़ों में जिन्दगी

अलविदा कह गयी दामिनी

विजय जय घोष के साथ

रो उठा खुदा भी

देख दामिनी की अंतिम रण हुँकार

झुक गया आसमां

लज्जा गया सूरज का भी आफताब

व्यर्थ ना जाए दामिनी का यह बलिदान

आओ हम सब मिल प्रण करे ये आज

हर नारी को मिले गर्व से जीने का अधिकार 

Tuesday, December 25, 2012

किरण

दुश्मनों मैं दोस्त तलाशता रहा

शैतानों के बीच खुदा तलाशता रहा

गुमनामी की गलियों से निकलने को

रोशनी की किरण तलाशता रहा

छिटक हाथ भटक गया उस राह

गर्त की काली स्याह में जिधर

अस्त हो रही जीवन की छावं भी

दलदल इतना गहरा

खिंच रखी जड़ों की छोर भी

लहुलुहान हो थक गया

हौसला पस्त होते होते रुक गया

उम्मीद जगने लगी  फिर से

नजर आने लगी जब

उज्जाले का किरण फिर से

 

Monday, December 24, 2012

दामिनी

सिसकती रही बेबस दामिनी

पर उन दरिंदो को जरा भी रहम ना आई

शर्मसार हो गयी सभ्यता सारी

छिन्न भिन्न हो गयी कायनात सारी

ढाये जालिमों ने ऐसे जुल्म

रूह शैतान की भी काँप गयी

बना अपनी हवस का शिकार

सरिया लोहे की खोख में उतार दी

फेंक दिया बीच राह नग्न कर

कुदरत भी लज्जा गयी

दिलाने इन्साफ अपने को

झुन्झ रही दामिनी मौत से

सुन उसकी आत्मा की अंतर्नाद

खुदा भी खुद खौफ जदा हो गयी

सुनो ये दुनियावालों

दामिनी है तुम्हे पुकार रही

रहनुमा ना बन सके

हमदर्द बन

इस रण में तुम भी शामिल हो जाओ

उसके इन्साफ के लिए

सरकार तो क्या

खुदा से भी तुम लड़ जाओ

कोई तो सच्चा मसीहा बन

ऐसी पुनरावृति से समाज को बचा लाओ

 

कलियाँ

रंग बी रंग पुष्पों की कलियाँ

अनछुई कोमल पंखुड़ियाँ

शबनमी बुँदे खुशबुओं की लड़ियाँ

महका रही फिजायें

रूमानी बना रही साँसे

करवटे बदलने लगे अरमान

बुनने लगे नये अहसास

नाजुक कोमल सेज का

सपनों में करने लगे दीदार

करने लगे दीदार

 

मिले कैसे

मिले तुमसे कैसे

तुमने कभी पुकारा नहीं

चाहे तो चाहे तुम्हे कैसे

तुमने कभी चाहा नहीं

बिन तेरे जिये कैसे

जीना तुझे गंवारा नहीं

तुम जो बदल गए

हमें भी वो गंवारा नहीं

जिक्र किया तुमने जमाने का

अफसाना ये परवान चढ़ा नहीं

कैसे कहे तुमसे

इस बेदर्द जमाने को

प्यार की क़द्र है नहीं

मिले जो तुमसे तो

इजहार करे इश्क तुमसे

पर मिले कैसे

मिलना तुम्हे गंवारा नहीं

 

Thursday, December 13, 2012

घटायें

बड़ी ही असमंजस की है ये बात

चलती है घटायें मेरे साथ भी

कुछ पल को ठहर जाऊ जो कहीं

रिम झिम बरस जाती है घटा वही

इसे महज ये इतेफाक कहूँ या संजोग

कुदरत की है पर ये अद्भुत देन

मरुभूमि की प्यासी धरती में भी

घुमड़ आती है घटाओं की छाया

जब पड़ते है चरण वहाँ

बदल जाती है वहाँ की साया

पर सच है यही 

चलती है घटायें मेरे साथ भी





 

युवा चाहत

युवा दिखने की चाह अभी है बाकी

बुड़ापे की है ये निशानी

इस मर्ज की अवधी है बड़ी निराली

बहक जाती बुड़ापे में जवानी है

नकली बाल और दाँतों के संग

युवा दिखने की पूरी है तैयारी

देख हसीन चहरों को

हिलोरें मारे जवानी है

हाथों में लाठी

आँखों में लाली

ललक मटरगस्ती की

पर अभी तलक है बाकी

बुझते चिरागों में

रौशनी की लौ अभी है बाकी

निहारे दर्पण खुद को

कामना ऐसी अभी है बाकी

युवा दिखने की चाहत अभी है बाकी 



 

वरण

हरण किया जिसने इस दिल का

वरण उसे करने की है तारीख आयी

डाल बाहों का हार गले में

कसमे खायी साथ निभाने की

बना चाँद को साक्षी

रस्मे पूरी कर डाली

समर्पित हो एक दूजे को

दो जिस्म पर जान एक बना डाली

न फेरे न बाराती

पर मेघा फूल बन बरस आयी

स्वयंवर से भी हसीन यह पल

यादगार मिलन बेला बन आयी

था इन्तजार जिस पल का

वो शुभ बेला चली आयी 

दिलों के तार

सज गए दिलों के तार

तड़पती रूह हो गयी शान्त

चलने लगी फिर से जैसे साँस

धडकनों में आ गए जैसे प्राण

मिला जो सुर को साज का साथ

सज गए दिलों के तार

छाने लगी मदहोशी की खुमार

सुनायी देने लगी प्रेम राग

बदल गयी रूह की चाल

पूरी हो गयी जैसे कोई तलाश

मिला धडकनों को

जो संगीत का साथ

सज गए दिलों के तार 

Friday, December 7, 2012

निगाहें

निगाहें जाने क्यों शरमा जाती है

देख खूबसूरती को अदब से झुक जाती है

पलके बंद कर तारुफ़ वया कर जाती है

जो लफ्ज लव सहज कह ना पाए

आँखों ही आँखों में वो बात कह जाती है

अंदाज ये निगाहों का दिल में उतर

प्यार के परवान चढ़ जाती है

निगाहें जाने क्यों शरमा जाती है