Tuesday, May 14, 2024

ग्रहण

ख्याल जेहन आया रुबरु करा लूँ खुद से खुद को आज l

थरथरा उठे पांव महीन नोंक चुभन कंपकंपी के साथ ll


निरंतर पराजय से क्षत विक्षित वैचारिक वाद संवाद l

द्वंद समावेश लिये यह आक्रमक सैली रंजिश द्वार ll


विस्फोटक चक्रव्यूह आगे नतमस्तक चक्रवर्ती मंथन काल l

हर बारीकी में बारूदी कण कण मस्तिष्क शून्य ग्रसत समाय ll


अभिलाषा परम्परा आलेख स्वप्न दिग्भ्रमित ग्रहण छाया माय l

मरुधरा सी मिथ्या काया मन रुदन आवेग विचलित करती जाय ll


रेखांकित चित्रण अधूरे रूह बदलते जज़्बातों की l

फेहरिस्त लहू रिसते बोझिल नयन दर्पण अरमानों की ll


संजो पिरो ना पायी फिर से कड़ियां उन पायदानों की l

आतुर बेकरार खयालात खुद मुझे खुद से मिलाने की ll

Saturday, May 4, 2024

रूहानी साँझ

पैगाम जो आहिस्ते दस्तक दे रहे थे रूहानी साँझ को l

करार कही एक छू रहा था इसके सुर्ख लबों साथ को ll


संगीत स्वर फ़रियाद आतुर जिस तरंग ढ़ल जाने को l

वो मौन दिलकशी डूबी होठों तन्हा सागर बीच आकर ll


आरज़ूयें बेकरार थी जिस अधूरी ग़ज़ल साज की तरह l

दिलजलों को ख्वाब वो लिखती गयी मनचलों की तरह ll


दास्ताँ बयां ना होती इस अल्हड़ दर्द के मासूमियत की l

जुबाँ अधूरे किश्तों पैबंद सजी कहानी सुना ना रही होती ll


मासूम नादानी मौसीक़ी रंगा चाँद कहर ढा गया इस बाती पर l

इनायतों सिमटी बदरी में किसी दिलचस्प आयतों की तरह ll