Thursday, December 26, 2019

सत्य की पहचान

ख़ोज रहा हूँ असत्य में सत्य की पहचान को

इस आबोहवा में लौ चिंगारी की आगाज़ को

कमसिन उम्र परिंदों सी छटपटाहट

हर लफ़्ज़ों से अँगार हैं बरसे

गहरे कोहरे घनघोर अँधेरे

तमाशबीन खड़े हैं समय घेरने

उन्माद हिंसक ज्वलंत प्रकरण

नए रूप में उभरा हैं रावण

होलिका दहन ताण्डव रूप धरे नवयौवन

रक्त होली बीच गुम हो गया बचपन

चल रहा असत्य हर घर हर गली गली

आराध्य बन पूज रही घृतराष्ट्र की टोली

करने इस कुरुक्षेत्र पटककथा का पटाक्षेप

पुकार रही सत्य के शंखनाद की आवाज़  

पुकार रही सत्य के शंखनाद की आवाज़     

Friday, December 13, 2019

ख्यालों की माला

गुँथ रहा हूँ ख्यालों की माला

कही अनकही अहसासों की गाथा

ऊपर गागर नीचे सागर

भँवर में अटकी सपनों की डागर

संसय भ्रमित ख़ोज रहा मन

मरुधर बीच अमृत नागर

आत्मसात करलूँ हर तारण

बैठू पूनम की रात मधुशाला जाकर

तृप्त हो जाऊ इस बैतरणी को पाकर

रस वो नहीं रुद्राक्ष तुलसी पिरोकर

बने श्रृंगार गजरे तेरे ख्याल पिरोकर

खोल पिटारा बैठा हूँ

निकल आये कही तरुवर में सागर

चहक उठे यादों की बगियाँ

भर आये नए सपनों के गागर

नए सपनों के गागर

Thursday, December 12, 2019

पत्ते

सिलसिला बातों का थम गया

दूर तुम क्या गए

दौर मुलाकातों का रुक गया

झरोखें के उस आट  से

चाँद के उस दीदार को

दिल ए सकून की तलाश में

खो गया तेरी गलियों की राहों में

तेरी बिदाई को मेरी रुसवाई को

छलकते दर्द की परछाई को

छिपा अरमानों की बेकरारी को

जोगी बन आया मैं दिल की तन्हाई को

हाथ छूटा मंजर टूटा

दूरियाँ चली आयी दोनों के पास 

मुक़ाम ख्यालों के ठहर गए 

पत्ते बदल गए रिश्तों के साथ 

Tuesday, November 5, 2019

आँखों का आलिंगन

अनकहे अल्फाजों का पैगाम हैं

जुल्फ़ों की लटों में गुजरे जो

हर वो शाम पाक ए जवां हैं

कुछ रूमानी सा अंदाज़ हैं

निखर आये रंग हिना भी

मौशीकी में डूबी शबनमी रात हैं

एक पल को ठहर जाये यह पल यहाँ

उड़ा ले जाये आँचल पवन वेग में

हिरणी सी मदमाती चाल हैं

छलके रोम रोम से प्यार खुदा बनके

संगेमरमर में तराशी ताज हैं

छोटा सा हसीन यह खाब्ब हैं

आँखों के आलिंगन में सजी रहे

दुल्हन बनी अपनी हर रात हैं

दुल्हन बनी अपनी हर रात हैं 

Friday, October 11, 2019

गुफ्तगूँ

साँसों की गुफ्तगूँ में

गुस्ताख़ी नजरों की हो गयी

खुले केशवों की लटों में

अरमानों की ताबीर खो गयी

देख चाँद के शबाब को

आयतें खुदगर्ज अपने आप हो गयी

सिंदूरी साँझ की लालिमा में लिपटी

आँचल के आगोश में सिमटी

तारुफ़ फ़िज़ा के लावण्य पर फ़ना हो गयी

निकल सपनों के ख़्यालों की जागीर से

चाँदनी नूर बन दिल से रूबरू हो गयी

हौले हौले तहरीर लबों की दस्तक ऐसी दे गयी

गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी

गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी

Saturday, September 14, 2019

यादों के नाम

लिख रहा हूँ नज़्म तेरी यादों के शाम

महकी महकी सोंधी साँसों के नाम 

सागर की कश्ती बाँहों के पास 

उड़ रहा आँचल निकल रहा आफताब 

शरमा रही लालिमा झुक रहा आसमां 

बंद पलकों के शबनमी दामन ने 

थाम लिया लबों के अनकहे लफ्जों का साथ 

निखर रही हिना छुप रहा महताब 

खोया रहू ता जीवन तेरे केशवों की छाँव 

बीते हर सुरमई शाम तेरी एक नयी नज्म के नाम 

मेहरबां उतार तू अब नक़ाब का लिहाज 

समा जा मेरी रूह के आगोश में 

बन मेरी धड़कनों का अहसास 

मैं लिखता रहूँ नज्म बस तेरी यादों के नाम   

Thursday, August 22, 2019

बेबजह

कोशिश करता हूँ मुस्कराने की

रुन्दन के आलाप को छिपाने की

दगा पर दे जाती हैं लकीरें ललाटों की

सूनी पथराई आँखों का मंजर

कह रहा देख ताबीर हाथों की

ले कटारी उकेर दूँ

किस्मत की इन अछूती लकीरों को भी

भूल गया था सँवारने खुदा जिन्हें

सपनों की अनमोल जल तरंगों सी

प्यासी रह गयी थी अन्तरआत्मा

रिस रहा लहू अंतर्द्वंद के प्रहरों से भी

वक़्त के पहले चहरे पर पड़ी सलवटें

चीख चीख सुना रही कहानियों इन लक़ीरों की

कर समझौता उदासी के इन रंगों से

उम्र अब एक नयी लिखूँ

बेबजह मुस्कराने की

बेबजह मुस्कराने की

Monday, August 19, 2019

रूठी जुबानी

अधूरी मोहब्बत का अधूरा फ़साना हो तुम

या अधूरे अल्फाजों की किताब हो तुम

या फिर अध लिखे खतों की ताबीर हो तुम

जो कोई भी हो तुम

पर मेरे लबों की खोई मुस्कान हो तुम

जुगनू सी चमकती, तारों से टिमटिमाती रातों में

चाँद की फरमाईस हो तुम

या तेरी धुन पर थिरकती कायनात की कोई कहानी हो तुम

जो कोई भी हो तुम

पर मेरे एक तरफ़ा इश्क़ की निशानी हो तुम

दरख्तों पर उकेरी कोई अधूरी चित्रकारी हो तुम

या मंदिर मस्जिद में लिखी कोई इबादत हो तुम

जो कोई भी तुम

पर मेरे बदनाम इश्क़ की रूठी जुबानी हो तुम

पर मेरे बदनाम इश्क़ की रूठी जुबानी हो तुम  

Thursday, August 15, 2019

निंद्रा

रुला रुला आँसुओ को मैं सुला आया

बोझिल पलकों को तम के साहिल में डूबो आया

खुदगर्ज़ हो चले थे जो जज्बात

जनाजे की बारात में दफ़न उन्हें कर आया

अरमानो के वो मुक़ाम टिसन जिसकी चुभ रही

लहू की बारिस में उन्हें भी भिगों आया 

कर रुसवाई यादों के भँवर से

निंद्रा की आगोश में खुद को लुटा आया

पर अन्तर्मन की करुण रूँधो से

एक बारी साया भी घबरा आया

फिर भी

रुला रुला आँसुओ को मैं सुला आया

आँसुओ को मैं सुला आया 

सजा

इल्म इसका नहीं

उनकी गुनाहों का मैं सजायाफ्ता हो गया

बस

तारीख़ की तहरीर में इश्क़ बाग़ी हो गया

अमल किया जिस तामील को खुदा मान

निगाहों के क़ातिल का वो तो आफ़ताब निकला

खुली जुल्फों की कैद में

कतरा कतरा लहू कलमा इश्क़ लिखता चला गया

बड़ी नफ़ासत नजाकत से सँवारा था जिसे

क़त्ल ए गुनाहों में वो दिल भी शरीक हो गया

कब ऐ मासूम नूर ए अंदाज़

उनकी क़ातिल निगाहों का शिकार हो गया

खुदा को भी इसका अहसास हो ना पाया

और बिन गुनाह किये ही मैं

उनकी हसीन गुनाहों का सजायाफ्ता हो गया

सजायाफ्ता हो गया   

Sunday, August 4, 2019

तलाश

किरदार अपना तलाश रहा हूँ

जमाने की ठोकरों में बचपन अपना तलाश रहा हूँ

धधक रही ज्वाला जो इस दिल में

पूर्णाहुति में उसकी यादें अपनी तलाश रहा हूँ

बरगद की छावं में कागज़ की नाव में

ठिकाने ठहाकों के तलाश रहा हूँ

उड़ा ले गए वक़्त के थपेड़े जिन लम्हों को

आँखों में औरों की सपने वो तलाश रहा हूँ

आवारा बादलों में चाँदनी के नूर में

अक्स चाँद का तलाश रहा हूँ

कुछ और नहीं

उम्र के इस पड़ाव पर

खुदा बन

खुद में खुद को तलाश रहा हूँ

खुद में खुद को तलाश रहा हूँ   

Wednesday, July 10, 2019

पता

ठिकाने को उनकी रजामंदी क्या मिली

पता अपना मैं भूल आया उनके पते पे

अब खत लिखुँ या भेजूँ संदेशा

मशवरा कैसे करूँ इन घरोंदों से

मौसम जो बदला आशियानें का

ख्याल ही ना रहा कब छूट गए पीछे

पते बचपन के संगी यारों के

मदहोश ऐसा किया उनकी शोख अदाओं ने

मानो गुज़ारिश कर रही हो

खत एक तो लिखूँ नए ठिकाने पे

अफ़सोस मगर

मेरी नई रह गुज़र की डगर पर

पता उनका भी अधूरा था मेरी मंज़िल की राहों पर

और ना जाने कब कशिश की इस कशमश में

अपना पता भी मैं भूल आया उनके पते पर

अपना पता भी मैं भूल आया उनके पते पर

Tuesday, July 9, 2019

नज़रअंदाज़

हुनर ना आया उन्हें नज़रअंदाज़ करने का

स्वांग रचा मशरूफ होने का

पर अंदाज़ गुस्ताख़ नयनों का

दिल ए नादान संभाल ना पाया

फिसल गया

देख कायनात में  जन्नत की माया

रूह लिख रही थी जैसे

हर तरफ आयतों का साया

कलमा था वो बड़ा ही पाक ए नबीज़

गुनगुना रही थी जो वो दिल ए अज़ीज़

मशगूल थी वो अपनी ही धुन में

भूल बैठी थी

दिल भी वही कही है करीब में

वही कही है करीब में 

Friday, July 5, 2019

महत्वकांक्षा

बदलती फ़िज़ाओं ने मंज़िल का रुख मोड़ दिया

खुबसूरत पैगाम संदेशा मीठा सा सुना गया

एक नयी सुबह से करुँ एक नया आगाज़

कर लूँ दुनिया मुट्ठी में छू लूँ नीला आकाश

आसमाँ से आगे मंज़िल कर रही मेरा इंतजार 

कामयाबी के हर कदम लिखूँ एक नयी कहानी

उड़ चलू महत्वकांक्षा के उड़न खटोले पे हो सवार

मिल जाए मंज़िल को मन चाहा क्षतिज का आधार

आलिंगन करने धरा उतर आये अम्बर और आकाश

धूप छावं की चाल में फिसल ना जाऊ राह में

अटल मज़बूत इरादें लिए निकल जाऊ राह में

चूमने सफलता के कदम एक रोज

मंज़िल नतमस्तक होगी धूल भरे पाँव में

मनन कर इस बेला को इसी पल

आत्मसात कर जाऊ मंगल मंज़िल बेला को 

मंगल मंज़िल बेला को 

Thursday, June 20, 2019

जख़्म

ज़िक्र तेरा सालों बाद आया

रह गुजर वो कौन सी थी

कारवाँ यादों का फिर साथ ले आया

रंजिश थी या कोई साजिश थी उल्फतों की

अरमानों का रंग महल सज आया

खुमार बेक़रार लाँघ दरिया की चौखट

ह्रदय रूंदन कंठ भर आया

पिपासा पपहिया भटक रहा मरुधर धाम

मृगतृष्णा पर छोड़ ना पाया

व्यथा मेरे मन की कभी

सैलाब आंसुओं का भी समझ ना पाया

अधूरा था ज़िक्र तेरा

पर यादों की वो अनमोल धरोहर

जख़्म फिर से हरा कर आया

जख़्म फिर से हरा कर आया

Tuesday, June 11, 2019

तमाशबीन

ए जिंदगी तेरी किताब में

हम गुमनाम हो गए

नफरतों के बाजार में

मोहब्बत के क़र्ज़दार हो गए

साँसों की रफ़्तार ने निराशा में

ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली

टूटती नब्ज़ घबरा तुझसे

लफ्जों से महरूम हो गयी

कहने लगी हैं रुख हवायेँ सभी

आ लुका छिपी के पेंच खोल दे

जुड़ जाए मेरी डोर तेरी पतंग से

पुरानी बातों की गाँठें खोल दे

मुझ जैसे तमाशबीन में

फिर मोहब्बत के रंग भरने

कोई गुमनाम शायर ही सही

ए जिंदगी तेरे कुछ पन्ने

तुझसे ही उधार खरीद

तेरी किताब के पन्नों में

फिर से हमें आबाद कर दे 

Saturday, June 1, 2019

बेपर्दा

हर पाबंदियाँ तोड़ ख़त मैंने अनेक लिखे

किस पत्ते पर भेजूँ यह समझ ना पाया 

ज़िक्र तेरा सिर्फ़ खाब्बों की ताबीर में था 

तेरी जुस्तजूं का भी दिल को पता ना था

रुमानियत भरे खतों के लफ्जों में 

डोर एक अनजानी सी बँधी थी 

पर बिन पत्ते इनकी परछाई भी बैरंगी थी 

कशिश कोई ग़ुमनाम सी छेड़ दिलों के तार 

हर खत बुन रही थी तेरे ही अक्स ए अंदाज़ 

लिए बैठे था ख़त तेरे नाम हज़ार 

उतर आया था इन खतों में 

मानों चुपके से कोई आफ़ताब  

और हौले से बेपर्दा कर गया 

रूह को मेरी सरे बाज़ार, सरे बाज़ार 

Friday, May 10, 2019

दरार

तूने दिल में छुपा ली दिल की बात

कैसे खोलूँ रिश्तों की उलझी गाँठ

क्यों ना हम अब उगले दिलों के राज

बच जाए शायद टूटने से रिश्तों के तार

नाज़ुक धागों से अटकी हैं इन साँसों की जान

शीशें सी कही चटक ना जाए यह चाल

पिरोई नहीं जाती रिश्तों में कोई गाँठ

कैसे बंधी कैसे पड़ी भूल इसे रात की गात

दिलों के इस सफर में

क्यों ना बैठे हम तुम दोनों मिलके आज

खोल दिलों से दिलों के हर राज

भर दे रिश्तों में पड़ी अनचाही दरार


Saturday, May 4, 2019

सपनों की कश्ती

बारिश बिन तेरे अधूरी हैं

भीगूँ कैसे

आँचल से तेरे दुरी हैं

बूंदों में इसके

तेरे तपिश की जमीं हैं

फूलों के कपोल पे जैसे

मोतियों सी लड़ जड़ी हैं

फ़ुहारों ने इसकी समेटी

यादों की अपनी बस्ती हैं

पर फ़लक से आसमां तक

तेरे ही रंगों की मस्ती हैं

दिल आतुर मिलने तरसे

बारिश की बूंदों में ढूंढ़े

अपने सपनों की कश्ती हैं

अपने सपनों की कश्ती हैं 

मेघ

बादलों ने छेड़ी ऐसी मधुर तान

बरस आए मेघा सुर और ताल

उमड़ घुमड़ घटाएँ घनघोर

मिला रही नृत्य पद्चाप

कही सप्तरंगी इंद्रधनुषी छटाएँ

कही थिरक रहे बिजली के तार

आनंद उन्माद शिखर

बरस रहे बादलों के अंदाज़

हो मेघों की सरगम पे सवार

फिज़ा भी चल पड़ी मदमाती चाल

मेघों की इस राग में

कुदरत ने ले लिया एक नया अवतार

बरस रही मेघा

सज रहे सुर और ताल 

Tuesday, April 16, 2019

खामोश लब

ख़ामोशियों को मैंने नए अंदाज़ दे दिए

लफ्ज़ जो जुबाँ पे आ ना पाए

उन्हें नए मुक़ाम दे दिए

दिलचस्प हो गयी इशारों की बात

भाषा की जगह आ गए दिलों के मुक़ाम

मौन लफ्जों के ज़िक्र में

बस गयी दिलों के रूहों की किताब 

कुछ लफ्ज़ फ़लसफ़ों से 

कुछ बंद लिफाफों से निकल

जोड़ आये दिलों से दिलों के तार

बेफिक्र इशारों की मन मर्जियाँ

हटा रुख से नक़ाब 

खामोश लबों से क़त्ल कर आयी सरेआम

क़त्ल कर आयी सरेआम

Tuesday, April 9, 2019

सारांश

संक्षेप में वृत्तांत सुनाऊ

सार का सारांश बतलाऊ

परिदृश्य कोई भी हो

किनारा भूमिका मंडित कर

मूल आलेख जागृत कर पाऊ

आक्षेप कोई लगे ना दामन

रचना सहज वर्णन कर पाऊ

ताम्रपत्रों पर गूँथ शब्दों को

लेखनी अमर कर पाऊ

सृजन कर भाव भंगिमा

पटककथा व्यक्त कर पाऊ

सिद्धांत अभिव्यक्त मंच पटल

प्रेरणा स्त्रोत्र प्रदान कर पाऊ

सुगम सरल परिभाषा में

गुड़ सार पूर्णतः बयां कर पाऊ

ख्वाईश है कोशिश सफल कर

चाँद सितारों में शुमार हो जाऊ   

Sunday, April 7, 2019

तन्हाईयाँ

कभी अपनी तन्हाईयों में

हमें याद करना तुम

गल मिल रोयेंगे दोनों खूब

उदासी के उस आलम में

दिल की किताब खोले रखना तुम

लहू से रंगें अक्षरों में

सूखे गुलाब तलाशेंगे हम तुम

अनमोल हो जायेंगे यादों के हर सबब

मिलेंगे जब दो बिछड़े हमसफ़र

ना तुम कुछ कहना ना मैं कुछ कहूँगा

इस इंतज़ार को सिर्फ आँखों से बयाँ करेंगे हम तुम

टूटे हुए अरमानों को

हर अहसासों में जिन्दा रखेंगे हम तुम

वादा बस इतना करो तुम

अपनी तन्हाईयों में हमसे मिला करोगे तुम

हमसे मिला करोगे तुम   

पाणिग्रह

लिख लाया मैं अपने वो अल्फ़ाज़

मिला ना जिन्हें इन लबों का साथ

अहसास तुम भी कर लो

छू इस ख़त को अपने हाथ

नयनों में तेरे कैद हैं

मेरे दीवाने दिल के हर अरमान

महक़ तेरे यौवन की

मदमाती लहराती जुल्फों की

छेड़ गयी इस दिल के तार

आओं कर ले अब एक दूजे को अंगीकार

और जीवन भर के लिए

जुड़ जाये पाणिग्रह संस्कार

जुड़ जाये पाणिग्रह संस्कार

बग़ावत

धैर्य रख धीरज धर

आँसुओं की बग़ावत में

नयनों को शामिल मत कर

गुजर जायेगा यह पल भी

बस तम में उजाले की प्रार्थना कर

तुम जैसे विरलों की कैसी यह रुन्दन पुकार हैं

अश्क तो कमजोरों की पहचान हैं

चाहें जितने भी चले जुबाँ के बाण

हावी मत होने दो तुम अपने जज़्बात

एक पल के लिए विवेक को बना लो

अपने समर का हथियार

जीत जाओगें रण के हर मैदान

बग़ावत कर विद्रोह कर अपने जज्बातों के ख़िलाफ़

अपने जज्बातों के ख़िलाफ़   

गुमराह

गुमराह हो गयी राहें ख़फ़ा हो मुझसे

बीच चौराहें खड़ा रहा मग्न अपनी धुन में

ठहर गयी मंज़िलें ग़ुम हो गए रास्तें

अम्बर नीला धरा सुनहरी

ख़ोज रहा दिल मरुधर में मोती

भूल गया सागर बीच मिले हैं मोती

मन चिंतन भटक रहा गली गली

कभी चले दो कोश कभी पकड़े पगडंडी

कैसी यह विडम्बना कैसी यह पहेली

सिर्फ़ चाँदनी लग रही सखी सहेली सी

मूँद आँखे खोल दिल के छोर

गणना करने लगे मन चितचोर

किस राह पकड़ूँ मिल जाये क्षितिज का मोड़

छू लूँ अम्बर चूम लूँ पर्वत शिखर

निकाल लूँ मरुधर के सिप्पों से भी मोती

मिल जाये राहें अगर फ़िर वो अनोखी

गुमराह हो गयी थी जो कर मन चोरी  

Monday, April 1, 2019

अकेला

तन्हा हूँ पर अकेला नहीं हूँ

तेरी यादों में आज भी जिन्दा हूँ

राहे माना हमारी जुदा थी

दो कदम पर जो साथ चले

कस्ती वो मझधारों की मारी थी

लकीरें क़िस्मत भी दगा कर गयी

थमा तेरे आँचल की डोर

रूह मेरी मुझसे चुरा ले गयी

लहू अस्कों का हिना बन

जैसे दुल्हन हाथों सज आयी

और डोली संग संग अर्थी रिश्तों की सज आयी

फ़िर भी यादें तेरी इस दिल में दफ़न ना कर पायी

अनजाने में ही सही ओर जिन्दा रहने को

तन्हाई के लिए एक मौसिक़ी नजरानें में दे आयी

एक मौसिक़ी नजरानें में दे आयी

कुँजी

जज्बातों की ताबीर

अनछुए पहलुओं से टकरा गयी

खनखनाहट इसकी हौले से

कानों में कुछ गुनगुना गयी

एक नए तिल्सिम का पिटारा खोल

रंगीन जादुई दुनिया बसा गयी

सपनों के इस संसार ने

रातों की नींद भुला दी

और संग अपने जीने

कुँजी जज्बातों की थमा दी

भूली बिसरी यादों को आयाम नया दे

जज्बातों की ताबीर

जिंदगी जीने का सलीक़ा सीखा गयी

जिंदगी जीने का सलीक़ा सीखा गयी

  

आपके नाम

खूबसूरत सी नज़्म लिखूँ

या इस दिल की ग़ज़ल लिखूँ

आपकी कातिलाना निग़ाहों को

झीलों का हसीन शहर लिखूँ

धड़कनों पे दिल के पैगाम लिखूँ

एक नयी साज़ एक नयी धुन पे

आफ़ताब की एक नयी सरगम लिखूँ

दामन में आपके अपना नाम लिखूँ

गीत लिखूँ या सफ़र लिखूँ

माथे की बिंदिया को मेहताब लिखूँ

रूहों के मिलन को ताज़ का पैयाम लिखूँ

कुछ भी लिखूँ चाहे गीत हो या ग़ज़ल

दिल कह रहा हैं

दिल यह बस आपके नाम लिखूँ

दिल यह बस आपके नाम लिखूँ  

Monday, March 11, 2019

एक तरफ़ा

दुनिया मुरीद हैं मेरे अफसानों की

चाँद सितारों से इश्क़ फ़रमानें की

महबूब थी एक चाँद सी कभी

एक तरफ़ा था मगर अंदाज़ ए सफर

रुमानियत भरी थी पर इस दिल अज़ीज़ में

शरारत कहूँ या आँख मिचौली

कभी बन फिरती वो संग जैसे हो कोई हमजोली

कभी बनाता दिल चुपके से उसकी कोई रंगोली

कभी रंगता उसके रंग जैसे छाई हो होली

फ़िदा थी वो मगर किसी ओर की मौसिकी पे

नजरें इनायत थी उनकी किन्ही ओर की दहलीज़ पे

रास ना आयी उनको दिल्लगी मेरी ए

तरस गयी रूह, भटक गयी कहानी ए

ग़ज़ल रह गयी यह आधी अधूरी किसी मोड़ पर

दुआ फिर भी इनायत, उनकी सलामती के लिए हर मोड़ पर  

Wednesday, March 6, 2019

दर्द की लेखनी

लेखनी दर्द की ताबीर बन गयी

अर्थहीन भावनावों की जागीर बन गयी

किस करवट पलटू पन्नों को

किताब अश्कों से भारी हो गयी

जुदा रूह से जो साँसे हुई

हर पन्ने बदरंगी जुबानी हो गयी

रक्त के कतरे से लिखी सजी कहानी

गुमनामी की गलियों में खो गयी

हौले हौले चलती लेखनी कुछ ऐसा लिख गयी

मयखानों से दिलों का नाता जोड़ गयी

दर्द जहाँ अल्फाजों में  सज

महफ़िल की शान बन गयी

लेखनी दर्द की ताबीर बन गयी

अर्थहीन भावनावों की जागीर बन गयी 

Tuesday, February 26, 2019

दर्पण अभिशाप

कल जब आईना देखा तब यह अहसास हुआ

वक़्त कितनी रफ़्तार से बदल गया

मन चिंतन तन वंचित विग्रह कर उठा

यादों के गलियारों में यह कैसा सन्नाटा पसर गया

कारवाँ जो साथ जुड़ा था कब का बिछड़ गया

पथरों के शहर में

बस एक मूकदर्शक बन रह गया

यूँ लगा मानों कितनी सदियाँ गुजर गयी

रंगत क़ायनात की फ़िज़ा संग अपने बदल गयी

सब था पास मगर सब्र ना था अब पास मगर

रौशनी से जैसे छन रही तम की माया नजर

एक अजनबी ख़ामोशी के मध्य

टूट रहे थे अब झूठे तिल्सिम के साये

रूबरू हक़ीक़त पहचान डर गया मन बाबरा

निहारु ना अब कभी दर्पण

लगने लगा यह जीवन अभिशाप कामना

लगने लगा यह जीवन अभिशाप कामना

Tuesday, February 12, 2019

मायूस मुस्कान

हर लम्हा लम्हा मुस्कराता रहा

ख़ुद में ख़ुद को तलाशता रहा

अनजाना था बेगाना था खुद से

मुस्कान में दर्द छिपता रहा

मिल जाए कोई पहचान शायद

इस दर्द को पढ़ ले कोई आकर

छू ले कोई अज़नबी यह अहसास

और जोड़ दे टूटे दिलों के तार

मिल जाए इसे किसी किनारे का साथ

कब तलक जिन्दा रह पाऊँगा

रूह बदलती अज़नबी साँसों के साथ

बह ना जाए खो ना जाए

भावनाओं के सैलाब में

इन मर्मस्पर्शी मुस्कानों के अहसास

उड़ ना जाए रँगत कहीं इसकी

रखना हैं इन ख्यालों को बरक़रार

बस इसलिए सजी रहे मायूस चेहरे पर भी

हर पल दिल को छू लेने वाली मुस्कान  

Sunday, January 27, 2019

दिल की बात

चिनारों की दरख़तों से फ़िज़ा लौट आयी

इबादत की मीनारों से रूह लौट आयी

सलवटें पड़ गयी रिश्तों की गलियारों में

भूल जो मेरे वजूद का क़िरदार

ढूँढती फिरी आसमां में महताब

लकीरें थी हाथों में मगर

क़िस्मत नहीं थी चाँद सितारों सी पास

नम थी दिल की जमीं पलकें थी भीगीं भीगीं

पर वो ना थी कही आस पास

छुपी थी जैसे बादलों के पार

ख्यालों की भीड़ में खो गयी अरमानों की दास्ताँ

आरज़ू उल्फ़त सनाट्टा बन छा गई दिल के आस पास

ना कोई ख्वाईशें ना कोई तरंगें छेड़ रही अब दिल के तार

बेज़ार हो उठी ख़ुद से ख़ुद के दिल की बात

उलझ रह गए बस रिश्तों के तार

सवालों के पहाड़ों में ढूँढता फिरा मैं अपना क़िरदार

टूटे दिलों में जगा ना पाया उन अहसासों के जज़्बात

बस टटोलता फिरा दिलों में दिल की बात, दिल की बात  

Monday, January 14, 2019

इच्छा शक्ति

प्रबल हो अगर इच्छा शक्ति

हिमालय की भी नहीं कोई हस्ती

धड़क रही हो ज्वाला जब दिलों में

आतुर उतनी तब होती जीतने की प्रवृति

दौड़ रहा हो लहू जब जूनून बन

द्वंद कैसे ना फिर मस्तिष्क में हो

आवेग इसका जो संग्राम मचाये

हृदय ललकार जोश ऐसा भर जाए

आगाज़ समर जीत से

एक नया अध्याय रचत जाए

कर्मठ हो जब ऐसी लगन भक्ति

वरदान बन जाती हैं तब सम्पूर्ण सृष्टि

रूह से मंज़िल फिर दूर नहीं

नामुमकिन सी फिर कोई सुबह नहीं

प्रबल इच्छा शक्ति के आगे

हिमालय का भी कोई मौल नहीं

कोई मौल नहीं 

Saturday, January 12, 2019

उम्र फ़साना

उम्र तो सिर्फ़ और सिर्फ़ एक फ़साना हैं

चेहरे की झुर्रियाँ ही सिर्फ़ वक़्त का अफ़साना हैं

फ़लसफ़ा लिखा जिसने इन साँसों पर

परवाज़ भरती वो गगन खाब्बों पर

आईना तो सिर्फ़ इसका एक बहाना हैं

उम्र की दहलीज़ मानो फ़रेब का खज़ाना हैं

रंगों की उल्फ़त इसका ताना बाना हैं

फ़ितरत कभी इसने बदली नहीं

धड़कनों से यारी इसकी कभी जमी नहीं

रूह तो सिर्फ़ इसका एक मुखौटा हैं

हर पड़ाव पर मगर एक नया संदेशा हैं

जी लो जी भर पल दो पल यहाँ

क्योंकि उम्र के बदलते आसमां में

कल का क्या भरोसा हैं कल का क्या भरोसा हैं

Monday, January 7, 2019

एक लहर

पतों की सरसराहट फूलों की मुस्कराहट

दस्तक धड़कनों को यह दे रही

कुछ अर्ज़ियाँ अभी मुक़म्मल होनी बाकी हैं

आयतों में मोहब्बत के दीदार होने अभी बाकी हैं

गुजरती शामों के ढ़लती रातों के पैगाम अभी बाकी हैं

वियोग की तपिश में जल रही रूह को

सकून की छावं अभी बाकी हैं

बस एक पल को ठहर जाये यह पल

हसरतों की मंज़िल में कुछ फ़ासले ही बाकी हैं

उतर आनेवाला हैं चाँद धरा पर

उखड़ती साँसों में यह खाब्ब अभी बाकी हैं

दफ़न कई शिकायतों के पन्ने अभी खुलने बाकी हैं

डूबा ले जाने को एक लहर अभी आनी बाकी हैं

एक लहर अभी आनी बाकी हैं