Saturday, June 26, 2021

क़िरदार

महफ़ूज थी कुछ यादें वक़्त के उस क़िरदार में l
गुजर गयी बिन बरसे ही आवारा बादल साथ में ll

सफ़र इतना ही था मेरा फ़िज़ाओं के गुलज़ार में l
पतझड़ का मौसम सजा था बहारों के बाग़ में ll

पर कतरे परिंदों सा बंद था ख्यालों के पिंजार में l
चहकी जिसकी बोलियाँ कभी बरगद की शाख में ll

निर्जन सी सपनों की कुटियाँ इस निर्धन के पास में l 
अश्रुओं का मंजर बहा ले गयी यह गुलिश्तां साथ में ll

खाली खाली नींदें सिर्फ़ खाली खाली सौदे पास में l
एकाकी के इस पल में यादें भी नहीं रही साथ में ll

मशरूफ थी जो शोखियाँ कभी गुलमोहर साथ में l
इस अंजुमन खल रही उनकी ही खलिस पास में ll

फरियाद थी महकती रहे यादों की हिना साथ में l
गुज़ारिश रास ना आयी उस काफ़िर को ख्यालात में ll

फ़लसफ़ा मजमून इतना सा ही था मेरे पास में l
यादें सदा हमसफ़र बनी रहे मेरे हर किरदार में ll   

Friday, June 25, 2021

कारीगरी

बड़े ही हुनरमंद थे उनकी कारीगरी के हाथ 
तराशते रहे काँच का दिल पथरों के साथ 

रंज ना हुआ उन हाथोँ को एक पल को भी 
नश्तर सी चुभती रही टूटे शीशे की धार 

दरिया रिस्ते लहू का था बड़ा ही बदनाम 
धड़कनों पे था मौन रहने का इल्जाम

लकीरें हथेलियाँ उकेरी नहीं उन खाब्बों ने 
साँसों का सौदा था जिस अज़नबी खाब्बों से 

थी वो एक बहती मझधार पहेली सी 
कश्ती बहा ले गयी वो दिले नादान की 

रास ना आयी उसे वफायें यार की 
दिल दगा दे गयी उस मेहताब की 

अस्तित्व बिख़र गया टूट काँच के आफ़ताब की 
वो तराशती रही पथरों से दिल चटक धार सी  

Wednesday, June 23, 2021

पैबंद

सुनके उनकी मीठी मीठी बातों को l
बैठ गया पिरोनें रिश्ते धागों को ll

कशीदें अदाकारी हुनर साजों से l
छुपा लूँ पैबंद उलझे धागों से ll

रफ़ू कर फ़िर सी लूँ उन रिश्तों को l
तार तार कर गयी वो जिन रिश्तों को ll 

चुभ रही एक कसक ज़िस्म कोने में l
छलनी हो रही अंगुलियाँ इन्हें सिने में ll 

सिते सिते पैबंद भूल गया पिरोने धागों से l
रिश्तों के धागे सुई की उस महीन कमान में ll

रिहाई ना थी टूटी रिश्तों जंजीरों बाँध से l
जकड़ रखी थी कुछ बंदिशों ने मनोभाव से ll 

रफ़ू हो हो वो बिखर गए पैबंद टाट में l
दुरस्त कर ना पाया इन्हें उलझे तार से ll 

Tuesday, June 15, 2021

सम्मोहन

गज़ब का सम्मोहन उसकी हर बातों में 
दिलकश मीठे मीठे रूमानी अंदाज़ों में 

लफ्जों अल्फाजों की वो सुन्दर जादूगरी 
जुगनू सी चमकती उसके होटों की हसी 

बिन जिसके अर्ध निशा भी गुम अँधेरी सी 
मादक इठलाती चाँदनी करवटें अधूरी सी 

साँझ बेला उसकी कोई तिल्सिम सुनहरी 
पहेली वो इस पल की सम्मोहन अनोखी 

रूहानियत की वो कोई ईबादत नई नई 
नयनों से सजाती कोई धुन नई नई सी 

गिरफ़्त हो चला मन बावरा उसकी हसीं 
घुल गया गुल उसके सम्मोहन की गली 

अंश बिखरा गयी इस डाल उसकी छवि 
कमसिन सी वो मासूम सम्मोहन छवि  

Friday, June 11, 2021

पनाह

फुर्सतों की उनकी भीनी भीनी पनाहगायें l
ठिकाना बन गयी मेरी मंजिलों की भोर ll

भटक रही जो आरजू उल्फतों में उलझी कहीं ओर l  
छू गयी उस राह पुँज को अदृश्य शमा की एक छोर ll 

अनबुझ पहेली थी उसके बिखरे बिखरे लट्टों की ढोर l
संदेशे खुली खुली जुल्फों के जैसे काली घटाएँ घनघोर ll

जुदा जुदा लकीरें हाथों की सलवटें माथे की l
निगाहें पनाह हो रही सुरमई करवटें रातों की ll   

उफन रहा मचल रहा सागर छूने किनारें की टोह l 
चुरा ले गया बहा ले गया तट को लहरों का शोर ll

कश्ती फिर भी सफ़र करती चली आयी तरंगों पे l
पनाह जो उसे मिल गयी उस चाँद की चकोर ll

फुर्सतों की उनकी भीनी भीनी पनाहगायें l
ठिकाना बन गयी मेरी मंजिलों की भोर ll

Saturday, June 5, 2021

तरुवर

तरुवर सा तरुण यह पागल सा मन आज l
टटोल रहा बारिश में खोये हुए पल आभास ll  

डोरे डाल रहे कजरे सँवरे सँवरे गगन आकाश l 
तन लिपट रही शबनमी बूँदे बरस बरस आज ll

खुली खुली लटों के उड़ते जुल्फें दामन आकार l
बादल उतर रहे रह रह आगोश में आकर आज ll

मृदुल तरंग लिख रही नयी बारिश शीतल लहर l
विभोर हो नाच रहे नयन मयूर तरुवर सी नज़र ll

चेतन सचेत बदरी हो रही फुहारों की होली आय l
डूब उतर रहा तन मन बारिशों की हमजोली साथ ll 

बहक गए मेघों के घुँघुरों के सारे सुर और ताल l
लगी समेटने अंजलि बूँदों के अक्स और ताल ll

तरुवर सा तरुण यह पागल सा मन आज l
टटोल रहा बारिश में खोये हुए पल आभास ll    

Friday, June 4, 2021

अतरंग

गूँथ डाली तेरे गुलाबों से महकते पैगाम ने l
जुल्फों में उलझे उलझे गजरे के प्याम ने ll

लावण्य यौवन करवटें बदलती रातों में l
घूँघट में ना हो नूर बहकते आफ़ताब के ll

मधुशाला बहती रहे नयनो के जाम से l
मदहोश रहे सपनों के हसीं संसार में ll

संगीत स्वर लहरी लिए दिल के अरमानों से l 
खनकती रहे चूड़ियाँ प्यार के इस व्यार में ll

डूबे इस कदर साँसों की सरगम ताल  में ऐसे l 
आलिंगन बना रहे धडकनों की मीठी साजिशों में ll

सप्तरंगी रंगो से सजी इस अतरंग कहानी  में l
घुलती रहे चासनी अरमानों की अंतर्मन नादानियों में ll 

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Thursday, June 3, 2021

यादों की अलमारी

पन्ने बंद कितबों के जो पलटे l
अलमारी खुल गयी यादों की ll

गाँठ खुलते ही पोटली की l
गठरी खनक गयी जोरों से ll

अब तलक जो कैद थी पिटारे में l
बिखर गईं मोतियों के साज सी ll

वो पुरानी मीठी मीठी बातें l
लुके छिपे सूखे फूलों के साये ll

चुराई थी खत से उसकी जो बातें l
छप गयी पन्नों में वो सब बातें ll

बिसर गयी थी जो किताब कल कहीं l
मिली क्यों वो जब थी एक दीवार खड़ी ll
  
पन्ने इसके कुछ नदारद थे l
अंजाम दूर खड़े मुस्करा रहे थे ll

जिल्द उतर गयी थी किताबों की l
अधूरी यादें बन गयी पहेली सी थी ll

किरदार एक मैं भी था इसका l
कहानी वो मेरी ही सुना रही थी ll