Monday, October 24, 2022

दीपावली

दीपावली दीपोत्सव सारांश संक्षेप में l

आहुति आभा से रोशन तम का मंडल ll


भोग चौदह वर्षों का कठिन वनवास l

काल मृत्युंजय रावण का कर संहार ll


सुन रघुवर अपनों की आराधना पुकार l

अवतारी चले आये थामे माता का हाथ ll


प्रीत किरण पुंज से चमकते धूमकेतु से l

शिरोधार्य इस मंगल बेला जन कल्याण ll


पिरो लडिया सुन्दर जगमग करते दीपों सी l

उत्सर्ग कर रहा संसार वैमनस्य अंधेरों की ll

Monday, October 10, 2022

वैतरणी

टाँक दिया रूह को उस पीपल की शाखों पर l

दर्द कभी रिस्ता था जिसकी कोमल डालों से ll


सावन में भी पतझड़ बातों से मुरझा गया पीपल l 

सूना हो गया चौराहा उजड़ गया पीपल राहों से ll


फिर भी समझा ना सका दिल वैतरणी को l

गुलाब वो बना था किसी और के आँगन को ll 


गवाह थी दरिया किनारे बरगद की वो लटें l

गुजरी थी कई शामें जिसके हिंडोले मोजों में ll


बदले बदले रूप वो चाँद नजर क्यूँ आ जाता हैं l  

पुराने खतों नूर उसका ही नजर क्यूँ आ जाता हैं ll


संग इसके बीते थे जो कभी हसीन अतरंगी पल l

टिसन देते आज भी याद आते जब कभी वो पल ll

Thursday, October 6, 2022

आकृति

आकृति मेरी प्रतिलिपि की जी रही किसी और के साये सी l

मगर खुदगर्ज़ी सी वो पहेली मानो नचा रही इसे तांडव सी ll


धोखा था उसकी उस साँझ का ख्वाब महका था जिसके छांव तले l

गुलजार पनघट सा वो नज़र आता था जिस महताब की डगर तले ll 


अक्सर उस जगह जहाँ मैं भूल आता था पता अपना ही l

फ़िज़ाओं की उन लिफाफों के करवटों सलवटों साये तले ll


कभी रूबरू खुद को करा ना पाया उनके अंतरंगी पलों से l

आधे अधूरे खत के उन लिफाफों के बिखरते सप्तरंगी रंगों से ll


कुछ कदम का फासला था प्रतिबिंब की उस परछाई से l

दबी थी रूह मेरी आकृति की जिस साये की परछाईं से ll