Saturday, September 14, 2024

अश्रुधार

मुनादी थी बहुरूपिये अफवाहों अरण्य आग की l


आतिशबाजी सी जलती बुझती खुशफहमीयाँ बीमार की ll


क़ुर्बत द्वंद शील मुद्रा मंशें मंसूबे जज्बातों लहरें पैगाम की l


रूमानियत रुबाई कयास मुरीद वाकिफ इस कायनात की ll


कशमकश सुरूर तार्किक मिथ्या शुमार वहम ला इलाज की l


पन्ने अतीत के पलटती स्याह उजड़ी रातें मूसलाधार बरसात की ll


खुमार बदरंगी चादर अधूरी खामोश ख्वाबों मुलाकातों की l


साँझी सांची चाँदनी फ़िलहाल अर्ध चाँद इस उधार बेकरारी की ll


अक्षरों के मलाल अक्सर सगल संजीदा क्षितिज नैया पार की l


अफवाहों फेहरिस्त रंग बदल गयी बारिश इन टुटे अश्रुधार की ll

Monday, September 2, 2024

अल्पविराम

अश्वमेघ सा विचरण करता यह उच्छृंखल मन मयूर दर्पण नाचे मेघों साथ l

खोल जटा रुद्र हारा सा रूप त्रिनेत्र मल्हार सप्तरंगी बाण धुनों रंग जमाय ll


मृगतृष्णा परछाईं खटास की मीठी रूह सी चादर लड़कपन ओढ़ इतराय l

विभोर सागर मंथन बाँध अंजलि सी तरुणी लिखती खत बादलों को जाय ll


यादों अल्पविराम लम्हों ख्वाहिशों रक्स पूर्णविराम अंकुश रस बरसाय l

अनुमोद स्वरांजली स्याही कहानी अक्स कागज पहेली बन मुस्काय ll


पिंजर शून्य अर्पण हिम शिखर बहका मन काशी गंगा बहता जाय l

मेरु नीर दरख्तों सुगंध चाँदनी रात अकेली सी आँचल छुप शरमाय ll


आकर्षण दृष्टि खुली डोरी मन किताबों की स्वप्निल कहानी कहती जाय l

कलाई पुराने धागों सदृश्य बँधी अपराजिता कड़ी मन्नतों खुलती जाय ll


यादों अल्पविराम लम्हों ख्वाहिशों रक्स पूर्णविराम अंकुश रस बरसाय l

अनुमोद स्वरांजली स्याही कहानी अक्स कागज पहेली बन मुस्काय ll

Sunday, August 11, 2024

दो अक्षर

खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान  l

दर्द टीसन में भी जैसे मुस्का रही इसके साये का यह अंदाज ll



घरौंदा परिंदों का उजड़ था इसके जिस सूने आसमाँ सिरहन ताल l

नज़र किसी को आया ना इसके बिखरे मंलग नूर का महताब ll



बेहया नींद परायी गुमशुदा हो गयी खुद से खुद की पहचान l

शतरंज बिसात लूट ओझल हो गयी इसकी रूह अस्मत पुकार ll



ग्रहण डस गया चाँद के इस सितारों का पैबंद लगा संसार l

पृथक हो भटक गया मेरूदंड इसके सारे आकाशी गंगा मार्ग ll



सिमट रह गया सिर्फ दो अक्षरों से इसके वज़ूद का अहसास l

खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान  l

Sunday, July 21, 2024

ll कहानी ll

छुने से अल्फाजों को मेरे पंख लग गये अर्ध चाँद नयनों को तेरे l

लहरें दीवानी कहानी रचने लगी घटाओं की जज्बाती तरंगों पे ll


साँझ गुलाबी रिमझिम सिंदूरी बारिश खत लिखे बादलों कागज ने l

काजल गलियाँ आईना वो रंजिशें रक्स साँझा हो गयी फिर चाँद से ll


सबब ज़िल्द पुरानी कहानी किताबों की किस्मत डोरी कच्चे धागों की l

बातें यादों से करती शराफत बिछुड़न तन्हा बेपनाह रस्म नाराजगी की ll


बेनक़ाब हो गयी साज़िशें आँधियों शराफत सादगी सौदेबाजीयों की l

लकीरें ललाट की मेरे मिल शून्य विरासत हो गयी हाथों की लकीरों तेरे ll


उलझ संवर गयी कटी कटी लट्टे पलकें तेरी मेरी उड़ते पतंगों डोरी की l

लबों को शब्द तेरे क्या मिले निखर गयी कहानी तेरे मेरे आसमाँ की l


Saturday, July 6, 2024

स्वच्छंद पहेली

साये ने मेरे प्रतिलिपि लिखी थी एक गुमनामी शाम की l

गुलमोहर छाँव परछाई सहमी थी उस किनारे घाट की ll


कशिश सरोबार सिंदूरी श्रृंगार मन वैजयंती ताल की l

सहज लहर पदचापें ठौर उस क्षितिज गुलाबी साँझ की ll


साँझी लेखनी साँसे कोई प्रत्युत्तर अंकित इस राज की   l

बहक उलझ गयी थी केशें उस हसीं चित्रण ख्वाब की ll


अंतरंगी डोर वैतरणी रूपरेखा उस खोई पहेली शाम की l

सतरंगी साजों धुन पिरो रही छलकती ओस बूँदों ख़ास की ll


मंथन उस काव्य धरा सजली थी प्रतिलिपि मेरे नाम की l

स्वच्छंद मुक्त हो गयी पिंजर बंद धड़कने मेरे उस चाँद की l