RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Sunday, July 21, 2024
ll कहानी ll
Saturday, July 6, 2024
स्वच्छंद पहेली
साये ने मेरे प्रतिलिपि लिखी थी एक गुमनामी शाम की l
गुलमोहर छाँव परछाई सहमी थी उस किनारे घाट की ll
कशिश सरोबार सिंदूरी श्रृंगार मन वैजयंती ताल की l
सहज लहर पदचापें ठौर उस क्षितिज गुलाबी साँझ की ll
साँझी लेखनी साँसे कोई प्रत्युत्तर अंकित इस राज की l
बहक उलझ गयी थी केशें उस हसीं चित्रण ख्वाब की ll
अंतरंगी डोर वैतरणी रूपरेखा उस खोई पहेली शाम की l
सतरंगी साजों धुन पिरो रही छलकती ओस बूँदों ख़ास की ll
मंथन उस काव्य धरा सजली थी प्रतिलिपि मेरे नाम की l
स्वच्छंद मुक्त हो गयी पिंजर बंद धड़कने मेरे उस चाँद की l
Saturday, June 22, 2024
सुरमई
अल्फाजों के मेरे छुआ लबों ने जब तेरे मिल गये सब धाम l
अंतस फासले सिरहाने पाकीजा अंकुश सिमट गये सब ध्यान ll
युग युगांतर साधना महकी जिस सुन्दर क्षितिज सागर समर समाय l
नव यौवन लावण्य अंकुरन उदय जैसे इनके रूहों बीच समाय ll
छुपी थी जो राज की जो बातें इसकी आसमाँ परछाईं के साथ l
आते आते दरमियाँ थरथराते पन्ने पलटने लगे पुरानी किताबों के पास ll
बिन शब्दों का स्पर्श असर मुरादों को बांध गया कच्चे धागों साथ l
पतंग माँझे सी साँझा हो गयी जैसे बहकती साँसों की दीवार ll
अर्थहीन पतझड़ सी सज बिकी थी जिन सूनी गलियों की आवाज l
सुरमय बन गये बोल इसके पा साहिल दरिया किनारे का आगाज ll
Monday, June 17, 2024
बेजुबान इश्क
चिलमन गुलजारों जिसके लिखी थी एक बेजुबान इश्क कहानी l
तसव्वुर में तस्वीर रूहानी उसकी रुखसार सी ऐसी महक आयी ll
अल्फाज़ नयनों के उसके इन ख़ामोशियों की ग़ज़ल बन आयी l
रूह बदल धड़कने उस नूर ए माहताब के गालों की तिल बन आयी ll
कोई कसर कमी ना थी इशारों के इन इश्क इकरार इजहार में l
पहेली उलझी थी हिरनी के लंबे गुँथे बालों के सुहाने किरदार में ll
कच्ची डोरी ऊँची आसमाँ बादलों उड़ती रंगीन पतंगबाजी की l
बिन स्याही बेतरतीब लकीरें लिखी जुबानी खोये लफ्ज़ किनारों की ll
खोल गयी पंख आतुर परिंदों के बंद विरासत एकान्त पिंजरों की l
सज-धज संवर गयी उड़ान इस बेजुबान धूमिल इश्क किनारे की ll