Friday, September 8, 2023

प्रफुल्लित निंद्रा

तपती रेगिस्तानी रेत में छाले उभरे नंगे पांव में l

निपजी थी एक जीवट विभाषा इसके साथ में ll


बुलंद कर हौसलों को बढ़ता चल यामिनी राह पे l

विध्वंशी लू थपेड़े पराजित से नतमस्तक साथ में ll


मृगतृष्णा प्यासी इस धरोहर पिपासा रूंदन नाद में l

सुर्ख लहू भी जम गया बबूल की सहमी काली रात में ll


खंजर चुभोती तम काली घनी कोहरी डरावनी छांव में l

रुआँसा उदास अकेला रूह अर्ध चाँद परछाई साथ में ll


कुंठित मन व्याकुल अभिलाषा अधीर असहज वैतरणी नाच में l

धैर्य धर अधरों नाच रही फिर भी निंद्रा प्रफुल्लित अपने साथ में ll

Sunday, September 3, 2023

सगर

गुजारी थी कई रातें ख्वाबों के सिरहाने तले l

सितारों की आगोश में चाँदनी लिहाफ तले ll



फिर भी तवायफ सी थी ख्वाहिशें धड़कनों की l

राहों टूटे घुँघरू पिरो ना पायी माला साँसों की ll



बंदिशें कौन सी क्यों थी जाने चाँद की पर्दानशी में l 

बेपर्दा जो कर ना पायी पलकों तले थे जो राज छुपे ll



दूरियों के अह्सास में भी जैसे कोई आहट साथ थी l

फुसफुसा रही हवा झोंकों में कुछ तो खास बात थी ll



मिली थी जो कल फिर उसी चौराहे बरगद छाँव तले l

परछाई की उस रूमानी रूह में कोई रूहानी साँझ थी ll



आकार निराकार था उस प्रतिबिंब के दर्पण नजर में l

फिर भी हर अल्फाजों में उसकी ही बात सगर थी ll

Tuesday, August 8, 2023

ll बारिश की तान ll

कल देखा था बारिश को जुल्फों पर फिसलते हुए l

हौले से आँचल को लिपट कंगन डोरी बंधते हुए ll



मदमाती सी भींग रही थी दामन की पतवार l

संग पुरबाई झोंकों से कर्णफूल कर रहे थे करताल ll



महकी बालों गुँथी वेणी काले बादल रमी थी ऐसी l

रंग रुखसार बिखरा गयी थी इन्द्रधनुषी घटा शरमाय ll



लहर संगीत धुन बरसी थी जो नयनों काजल से l

कजरी स्याह मेघ सी ढाल गयी थी सुरमई आँखों में ll



झूमी थी जो झांझर एक पल शहनाई मृदुल तान सी l

सहमा लज्जा गयी थी बिंदिया इस माथे दर्पण ताज की ll



घूंघट पहरा ना था इसके सुनहरे आसमाँ आँगन में l

ग़ज़ल कोई लिख गयी कुदरत मानो बारिश बूँदों में ll

Thursday, August 3, 2023

सगर

गुजारी थी कई रातें ख्वाबों के सिरहाने तले l

सितारों की आगोश में चाँदनी लिहाफ तले ll


फिर भी तवायफ सी थी ख्वाहिशें धड़कनों की l

राहों टूटे घुँघरू पिरो ना पायी माला साँसों की ll


बंदिशें कौन सी क्यों थी चाँद की पर्दानशी में l

बेपर्दा कर ना पायी जो पलकों तले राज छुपे ll


दूरियों के अह्सास में भी जैसे कोई आहट साथ थी l

फुसफुसा रही हवा झोंकों में कुछ तो खास खनकार थी ll


मिली थी जो कल फिर उस पुराने बरगद छाँव तले l

परछाई की उस रूमानी रूह में रूहानी साँझ थी ll


आकार निराकार था उस प्रतिबिंब के दर्पण नजर में l

फिर भी हर अल्फाजों में उसकी ही बात सगर रही थी ll

Friday, July 7, 2023

शिकवा

अदना सा ख्याल यूँ ही जाने क्यों मन को भा गया l

गुफ़्तगू इश्क की खुद से भी कर लिया करूँ कभी ll


गुजरु जब फिर यादों की उन तंग गलियों से कभी l

जी लूँ हर वो लम्हा उम्र जहां आ ठहरी थी कभी ll


हँसूँ खुल कर मिल कर खुद से इसके बाद जब कभी l

झुर्रियों चेहरे की सफ़ेदी बालों की इतराने लगे खुशी ll


अन्तर फर्क़ करूँ उन लिफाफों में कैसे फिर कभी l

सूखे गुलाब आज भी जब महक रहे ताजे से वहीं ll


संवारू निहारूं जब जब दर्पण फुर्सत लम्हों में कभी l

परछाईं झलक इश्क की भी शिकवा और ना करे कभी ll