Friday, July 1, 2022

साँझा दर्द

छिपाने अश्कों याराना बारिशों से मैंने कर ली l
मेघों की बिखरती बूँदों से दर्द भी साँझा कर ली ll


शिकवा रहे ना खुद से किसी बेरुखी का l
काले बादलों में हबीबी की नूर तराश ली ll


हौले से अधूरे ख्वाब बेच जाती नींद पलकों में l
कोलाहल सागर मल्हारों यही थी जो छुपा लाती ll


रुखसत होने इस अश्रु व्यंग परिहास ज़ख्मों से l
बूँदों की फुसफुसाहट ताबीर इसकी बना डाली ll


फिदा बारिशों के इस संगम मनुहार पर l
धारा अश्कों मेहरान घटायें सिमट आती ll