Friday, May 25, 2018

हमराज

इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे

इश्क़ किया किससे यह तुम्हें बता देंगे

अब तलक लबों पे आ नहीं सकी जो बात

वो कलमें तुम्हें सुना देंगे

इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे

मिल रही गीतों में जो नवाजिसे कर्म

आवाज़ से उसकी तुम्हें रूबरू करा देंगे

इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे

जो हैं नज़रों के सामने

खाब्ब हैं जिनके इन नयनों में

दो चार उनसे भी तुम्हें करा देंगे

इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे

इस मोहब्बत का हमराज तुम्हें बना लेंगे 

छला

तेरे हाथों जब जब छला जाता हूँ

सोओं बार टूट टूट बिखर जाता हूँ

पलट कर फ़िर जब दर्पण निहारता हूँ

एक गुमनाम शख्शियत से रूबरू पाता हूँ

मिन्नतें फरियादें घायल दिल की

वो भी जब तुम अनसुनी कर देती हो

धड़कने फिर रूह से जुदा हो जाती हैं

और साँसों की डोर से जीने की तम्मना

अलविदा कह रुखसत हो जाती हैं

अलविदा कह रुखसत हो जाती हैं 


Saturday, May 19, 2018

मैं

कभी फूलों सा खिलता  हूँ

कभी हवाओं में बिखरता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो तन्हा यादों में भी महकता हूँ

कभी रात के साये में तारों सा चमकता हूँ

कभी पूर्णिमा के चाँद सा दमकता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो अमावस की रात ओर भी निखरता हूँ

कभी झरनों सा बहता हूँ

कभी सागर सा मचलता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो हर नयनों के नूर में बसता हूँ

कभी इत्र सा  बहकता हूँ

कभी मित्र सा बन जाता हूँ

मैं वो गुल हूँ

जो रूह बन धड़कनों में बस जाता हूँ