Wednesday, May 26, 2021

क़त्ल

दुरस्त गुजर रही थी जिंदगी अकेले में l
क़त्ल कर दिया हसीन खाब्बों के मेलों ने ll

गुनाह हो गया बेबाक़ी निगाहों से l
रिहा कैसे हो उन उम्र कैद बंदिशों से ll

चाँद नज़र आया एक शाम मेरे आँगन में l
चल पड़ा वो भी दिल कारवें संग राहों में ll

मुक़ाम वो आ गया चौराहा ओर करीब आ गया l 
सिर्फ अर्ध चाँद का साया रह गया इस मंज़िल पास ll

आहटों से रसिक इस कदर रहा बेख़बर l
आसमां डूबा ले गया चाँद घटाओं के पास ll

बिसर गया पथिक निकला था किस सफर l
कर बैठे गुनाह उसके मासूम से हमकदम ll  

क़त्ल हो गया अरमानों के तसब्बुर का l
गुनहगार बन गया टूटे दिल ख्यालों का ll  

Saturday, May 15, 2021

अंकुरन

बिन दर्द जीवन का क्या मोल l
गुलाब भी खिलता काँटों के छोर ll

पीड़ ना पहचानी जिस रूह ने l
कुदरत ने रची नहीं ऐसी कपोल ll
 
कुछ और नहीं कवायद यह धड़कनो की l
फासला ना हो साँसों और रूह के करीब ll

मुनासिब हैं आहट कदमों की बनी रहे l
सामंजस्य बना रहे उम्र और तन के बीच ll

बँधी रहे साँसों से साँसों की डोर l
कमज़ोर ना हो आस की डोर ll

टूट गए जो डाली से तो क्यों रोय l
सजा दो गुलदस्ते में नए जीवन की भोर ll

बगियाँ के गुलसिताँ सजी महकती रहे l
अंकुरित कुदरत के प्राणों के बीज़ ll   

Wednesday, May 12, 2021

रुबाब

स्पर्श था उनकी मीठी मीठी यादों का l
मन्नत की कलाई से बंधे धागों का ll

फ़ितरत धुन थी ही उनकी इतनी नायाब l 
शुमार कर लेती हर पैगाम अपने नाम ll 

सागर मचल रहा था आतुर उस किनारें को l 
ठहर गया था वक़्त आतुर उस साये को ll 

मग्न थी वो तारों के शहर अपने सफ़र में l
ख़बर ना थी मुझको भी अपनी उस पल में ll 

चाह ना पूछना उस माली की अब रुखसार l 
मरुधर आस लगाए बैठा मीठे पानी की धार ll

सिलसिला हैं इंतज़ार की नयी सहर आस l
उड़ा ले जाती पवन बदरी किसी दूजे पास ll

तारीख ने तहरीर लिखी थी उनके आने की l
तसब्बुर में चाहत थी उनके कुर्बत में आने की ll 

संदेशा आया फलक तक हमसफ़र सितारों की l
आफ़ताब भी फ़ना हैं इसके रुबाब नज़रों की ll

Sunday, May 9, 2021

हमकदम

एक फ़िक्र उसकी ही थी ज़माने में l
ख़ैरियत बदली नहीं कभी फ़साने में ll

दुआओं के अम्बर में फ़रियाद थी साँसों की l
मंत्र मुग्ध सुध बुध खो जाती राहों में उनकी ll 

कमसिन सा था यह सानिध्य अगर l
लटों में उलझा हिज़ाब था उस नज़र ll

राज छुपाये पुकार थी अंतर्मन की कोई l 
हर नज्म हसीन बने उनके साये जैसी ll

साथ कदम दो कदम उनके चलते कैसे l
मेहर में चाँद को नज़राना चाँद का देते कैसे ll 

सिफ़ारिश की थी सितारों से हमने उस घड़ी l
महफ़िल सजा रखी थी घटाओं ने उस घड़ी ll
 
ओझल था चाँद जाने कौन से झुरमुट बीच l
छोड़ गया यादें बस उन फरियादों के बीच ll

स्पर्श उनकी अनकही मीठी मीठी बातों का l 
छू जाती दिल के तारों को हमकदम जैसे कोई ll

Saturday, May 1, 2021

बेचैन पलकें

बेचैन रहती थी पलकें इस कदर l
अश्कों का कोई मोल नहीं था इस शहर ll

पर कटे परिंदों सा था ये हमसफ़र l
झुकी नज़रें बयाँ कर रही तन्हा यह सफ़र ll

मेहरम नहीं इनायत नहीं सुबह हो या रात भर l
फासला गहरा इतना दो पहर सागर के दो तरफ़ ll

आरज़ू मिली भटकती राह एक शाम इस शहर l
लिपट गयी सहम गयी ख़ुद से सहमी सहमी डगर ll

पगडंडियाँ से पटी थी बाजार की नहर l
निर्जन खड़ी थी जिजीविषा की लहर ll 

आहट एक समाई थी अंदर ही अंदर l
साये संग रूह की ना थी कोई खबर ll

रेखा हथेलियाँ बदलूँ एक रोज नए शहर l
फ़िलहाल ख़ामोश रहूँ कह रही पलकें संभल संभल ll 

 बेचैन रहती थी पलकें इस कदर l
अश्कों का कोई मोल नहीं था इस शहर ll