Thursday, July 26, 2018

पहचान

पहरेदार ज़माना जो बन बैठा

हमनें भी फ़िर आशिक़ी में तेरी

पहचान को अपनी गुमशुदा बना दिया

इश्क़ ही हैं सरफ़िरे दीवानों का मजहब

इस हक़ीक़त से ज़माने को रूबरू करा दिया

ठुकरा हर आयतें हर कलमा खुदा की

इश्क़ की इबादत को ही

पहचान अपनी बना लिया

बिस्मिल्लाह कर मोहब्बत से

इश्क़ के आफ़ताब का नूर ऐसा बना

आशिक़ों की फ़ेहरिस्त में

सबसे ऊपर

नाम अपना शुमार करा लिया

नाम अपना शुमार करा लिया




Sunday, July 15, 2018

भरोसा

यकीन खुद पर इतना रख

देख तेरे बुलंद हौसलें को

डर खुद अपने आप से इतना डर जाये

फ़िर कभी ख़ाब में भी डराने तुझे पास ना आये

याद रख इतना इस संसार में

कमजोरों की कोई पहचान नहीं

लक्ष्य से भटकों का कोई मुक़ाम नहीं

हारी बाज़ी जो जीत में पलट दे

उससे बड़कर कोई पहचान नहीं

जिंदगी के इस रण में

निराशा का कोई मुकाम नहीं

यकीन अगर खुद पर हो तो

सौ सौ चक्रव्यूह भेदना भी नामुमकिन सवाल नहीं

इसीलिए

खुद के भरोसे से ऊपर भगवान भी विराजमान नहीं     


मुल्क

तलाश में तेरी ख़त मेरा

मुल्क तेरा पूरा छान आया

पता पर वो मिला नहीं

आशियाना कभी जहां चाँद ने सँजोया था

शब्बाब ने तेरे ऐसा हमें डुबोया

हर नूर में सिर्फ़ तेरा अस्क नज़र आया

तस्वीर माँगी जमाने ने जो तेरी

खुद की तस्वीर में रंग तेरा भर दे आया

सितारों से पूछा फूलों में ढूंढा

अफसानों के उन तरानों को

हर महफ़िल में गुनगुनाया  

कलमा अपनी इबादत का नया लिख

तेरे मुल्क का आसमाँ रंग आया

आसमाँ रंग आया

Saturday, July 7, 2018

जुस्तजूं

जुस्तजूं इश्क़ की ऐसी लगी

फ़रियाद हवाओं संग बह चली

मुशायरा, मशवरा ऐसा अंदाज ए वयां बन आयी

हर जज्बातों मेँ  शायरी बन आयी

मिज़ाजे इश्क़ शबाब्ब ऐसा चढ़ा

हर क़तरा क़तरा क़ासिद बन आयी

दीवानगी के फ़ितूर का रंग ऐसा रंगा

फ़लक तलक जिंदगी फ़ना हो आयी

मुस्तक़बिल मुरीद ऐसी बन छाई

दिलों के अंजुमन में,

रसक ए कमर इज़हार कर आयी

मिल लफ्जों से नज़्म ऐसी बना डाली

हर दरख़्तों पर मानों फ़िजा चली आयी

बा दस्तूर क़ुरबत ऐसी मिली

सारा जहाँ भूल,

जिंदगानी इश्क़ के दरम्याँ सिमट आयी

जिंदगानी इश्क़ के दरम्याँ सिमट आयी 

Tuesday, July 3, 2018

आवाज़

दिलजलों की दास्ताँ के आगे

मयख़ाने में ए साकी तेरी कोई औकात नहीं

तू सिर्फ एक सफ़र हैं इस मोड़ का

हमसफ़र हर्गिज नहीं

कह दे मयखानों की दरों दीवारों से

छलकते जाम इनकी वफ़ा के पैमाने नहीं

पर ग़म भुलाने को

इससे बढ़ कर ओर कोई दवा नहीं

माना आगोश में इसकी

खुद की कोई पहचान नहीं

पर इससे हसीं कोई ओर महबूब भी तो नहीं

फिर भी

बिन दिलजलों के

ए साकी तेरी कोई पहचान नहीं

क्योंकि बिन इनके

तेरे दर पे ग़ज़ल की कोई आवाज़ नहीं 

ग़ज़ल की कोई आवाज़ नहीं 

इत्र सी

आ एक बार फ़िर से

उन गुजरें हुए लम्हों को यादगार बना ले

कुछ सुहाने पल चुरा

यादों का एक हसीन घरोंदा बना ले

किताबों के उन सुखें फूलों से

इसकी दरों दीवार सजा दे

इन्तजार के उन पलों में

मिलन की एक नयी आस जगा दे

निहारते हुए इस खाब्ब को 

आ यादों की ऐसी ताबीर बना ले

हर रूत महके ऐसी कायनात बना ले 

अनछुए पहलुओं  को

नींद से जागने की खुमारी बना ले

छू जाए दिल को जो बार बार

उन गुजरें यादों की

इत्र सी महकती कशिश बना ले

आ एक बार फ़िर से

उन गुजरें हुए लम्हों को यादगार बना ले