Monday, October 2, 2023

उन्माद

इश्क में उसके बार बार हर बार उजड़ा हूँ l

दरख्तों के पतझड़ शायद सावन नहीं पास ll



टूट बिखरा इसकी फ़िज़ाओं अनगिनत बार l

दिल फिर भी ना सुने इन कदमों की आवाज ll



रंग वो दूर था कही ना जाने क्यों बादलों पार l

चाँद ने दाग तिल छुपा रखा जैसे कोई राज ll



उन्माद इश्क नचा रहा हर चौबारे की गली गली फांस l

घुँघरू की तरह बजता गया उसके कदमों धूलो आस ll



सब्र इम्तिहान उजड़ उजड़ बिखरता इश्क लहू साथ l

अश्कों प्रीत सागर गहराई समा गयी इसके साथ ll



सूराख आसमाँ इश्क आँचल छू गया दिल के तार l

बहक गया मन एक बार फिर बिखर जाने के बाद ll