इश्क में उसके बार बार हर बार उजड़ा हूँ l
दरख्तों के पतझड़ शायद सावन नहीं पास ll
टूट बिखरा इसकी फ़िज़ाओं अनगिनत बार l
दिल फिर भी ना सुने इन कदमों की आवाज ll
रंग वो दूर था कही ना जाने क्यों बादलों पार l
चाँद ने दाग तिल छुपा रखा जैसे कोई राज ll
उन्माद इश्क नचा रहा हर चौबारे की गली गली फांस l
घुँघरू की तरह बजता गया उसके कदमों धूलो आस ll
सब्र इम्तिहान उजड़ उजड़ बिखरता इश्क लहू साथ l
अश्कों प्रीत सागर गहराई समा गयी इसके साथ ll
सूराख आसमाँ इश्क आँचल छू गया दिल के तार l
बहक गया मन एक बार फिर बिखर जाने के बाद ll