Sunday, May 14, 2017

भीड़ में

अक्सर मैं ख्यालों में खोया रहा

पहेली बन ख़ुद को टटोलता रहा

कभी सपनों की उड़ानों में

कभी उलझनों के नजारों में

पहचान ख़ुद की तलाशता फिरा

गुम रहे विचारों की ताबीर में

पर रूबरू खुद से कभी हो ना सका

उधेड़ बुन की इस कशमकश में

मैं भी शायद तन्हा खड़ा था

दुनिया की इस भीड़ में

दुनिया की इस भीड़ में