Friday, July 24, 2020

सकून

वो सकून हैं हर शामों की तसब्बुर का l
मंजर गुलज़ार हैं तन्हाई में उसकी यादों का ll

कौन कहता हैं मैं तन्हा अकेला हूँ l
हर रोज गुलफाम की क़ुरबत में उससे मिला करता हूँ ll

खत रोज एक नया उसे लिखा करता हूँ l
खबर उसे मिल जाये पतंग बिन डोर उड़ाया करता हूँ ll

हर फरमान मैं उफान लिए हर घूँट छलक जाता हूँ l
पीऊं कैसे जाम में भी अक्स उसका निहार जाता हूँ ll

कितनी हसीन यह सितमगर मोहब्बत हैं l
वो नहीं फिर भी उनकी रूह से भी मोहब्बत हैं ll

तन नहीं मन लगा जिससे किनारा उससे कैसा हो l
ख्यालों से निकल यादों से समझौता कैसे हो ll

सकून मिल रहा जिसकी फ़िज़ों से l
मौसम तन्हाईयों का गुलज़ार फिर कैसे ना हो ll

Sunday, July 19, 2020

सामंजस्य

क़िस्मत के बबंडर ने कोहराम ऐसा मचा दिया l
हस्तरेखाओं का जन्मकुंडली से मिलान गुनाह बना दिया ll 

अनबुझ पहेली बन गयी लकीरें हाथों की l
जन्मकुंडली बन गयी ग्रह नक्षत्र सरीख़ों सी ll

उलझ गयी जीवन रेखा दो पाटों बीच सी l
सलवटें उभर आयी माथे ललाटों बीच सी ll

कैसे हरे इसके भ्रम मायाजाल से l
कष्ट निवारण सुझाव मिल रहे चारों नाम से ll 

यतीम प्रतीत होने लगे अब नींदों के पीड़ भी l
जल रहे ज्यों ज्यों नीरज रिसने लगे घाव भी ll 

एक थी करनी दूसरी कर्मों की लेख l
उकेर लू कुछ अलग लक़ीरों पर लेखनी लेख ll

थाम लू बबंडर नयी उकेरी लकीरों बीच l 
बदल दूँ जन्मकुंडली इन लकीरों बीच ll   

मिल गयी रौशनी खुल गए चक्षु नीर l
सामंजस्य जम गया कुंडली और लकीरों बीच ll 
 

तन्हा चाँद

चाँद इश्क़ से तन्हा रह गया l
दुआओं की बस मुराद बन रह गया ll 

मुकाम लाखों ऐसे आये इस अंजुमन की फेहरिस्त में l
इजहार में इकरार मगर अधूरा रह गया तन्हाइयों के आलम में ll 

दाग झलक रहा इश्क़ के दामन पैबंद जैसे l 
कोई तिल चिपक आलिंगन कर गया चाँद को जैसे ll 

चाँदनी के नूर से टपक रही आयतें रोज नयी जैसे l
किनारे बैठ दीदार हसरतें पैगाम दे रही कोई जैसे ll

मुकम्मल जहाँ मिला नहीं इश्क़ बदनाम जैसे l
चाँद भी बदलता रहा रूप जलाने इश्क़ को जैसे ll 

आलम कुछ असहज बन गया करते करते इश्क़ की पैरवी ऐसे l  
सितारों से महफूज चाँद भी तन्हा रहा गया अपने मुस्तकबिल जैसे ll

घरोंदे की दरों दीवार भी परायी नज़र आ रही दिल में l
रुखसत हो इश्क़ छोड़ गया चाँद को तन्हा जब से ll

रुखसत हो इश्क़ छोड़ गया चाँद को तन्हा जब से l
रुखसत हो इश्क़ छोड़ गया चाँद को तन्हा जब से ll

Sunday, July 12, 2020

पल

शीतल पवन ठहरे हुए नदियाँ पल l
जगमगा रही रोशनी सितारों की ग़ज़ल ll

सोई नहीं आँखे मुद्दतों से एक पल l
पहरे लगे थे ख्यालों के चिलमन ll

अद्भुत हैं सुनहरी यादों के रंग l
गुलाब सा प्रफुलित हो रहा मन ll 

बेताब हो रही आरजू लिखने एक नया सबब l 
गुल इंतज़ार में शिथिल हैं पुतलियों के अंग ll

फ़ासले रंजिशों के ना थे कम l
एक धोखा था चाँद में उसकी नज़र ll 

उकेरे थे दरख़्तों पर कभी जो पल l
टटोल रही आँखे वो सोए हुए पल ll

इस पल में शामिल मिल जाए वो पल l 
जिस पल इंतज़ार लिखी यह ग़ज़ल ll

Friday, July 10, 2020

अझबूझ

साँसे गिरवी रखी थी मोहलत कुछ मिल जाए l
महरूम थी पनागाह नसीब वो आसमां मिल जाए ll

छूट गए कदमों की निशां जानें कौन सी अजनबी मंज़िलों पे l
बेरुखी इस कदर छाई मुरझा गयी कपोल अनजानी राहों में ll

दस्तूर रिवाज़ यह कैसा हैं अपना भी सब पराया हैं l 
छूआ जिस साये को वो भी एक टूटी प्रतिछाया हैं ll

समझौता था दर्द का अपने ही दर्द की ख़ामोशी से l 
जलता रहा जिस्म रिसता रहा लहू अपनी ख़ामोशी से ll

पुकार था जिसे एक बार सी लिए लबों ने वो जज्बात l
रुँध गया कंठ थरथरा उठे उजड़े चमन के अरमान ll

पड़ गए पैरों में घुँघरू हाथों में जाम l
नचा रही किस्मत कोठे बन गए धाम ll

मिली ना मुक्ति मिले ना चैन चलते रहे जहर बुझे बाणों के खेल l
गिरवी रखी साँसे भी शिथिल हो गयी देख यह अझबूझ खेल ll