मंजर गुलज़ार हैं तन्हाई में उसकी यादों का ll
कौन कहता हैं मैं तन्हा अकेला हूँ l
हर रोज गुलफाम की क़ुरबत में उससे मिला करता हूँ ll
खत रोज एक नया उसे लिखा करता हूँ l
खबर उसे मिल जाये पतंग बिन डोर उड़ाया करता हूँ ll
हर फरमान मैं उफान लिए हर घूँट छलक जाता हूँ l
पीऊं कैसे जाम में भी अक्स उसका निहार जाता हूँ ll
कितनी हसीन यह सितमगर मोहब्बत हैं l
वो नहीं फिर भी उनकी रूह से भी मोहब्बत हैं ll
तन नहीं मन लगा जिससे किनारा उससे कैसा हो l
ख्यालों से निकल यादों से समझौता कैसे हो ll
सकून मिल रहा जिसकी फ़िज़ों से l
मौसम तन्हाईयों का गुलज़ार फिर कैसे ना हो ll