Thursday, April 2, 2015

नाता

अरमानों को लफ्ज़ दू तो

दिल रोता है

पर मुस्कराके नये सपनें फिर बुनता है

इल्म नहीं मुझे इसके रोने का

इसलिये हर लफ्जों में जज्बात पिरोता हुँ

अरमानों की डोली

दुःखों की सेज पे भी हसीन बने

इसलिये पाने बचपन को फिर से

पल पल मचलता हुँ

हर रंगों की एक नयी कहानी हो

हर लफ्जों की एक नयी जुबानी हो

इसी कशमश में

सपनों से दूर चला जाता हुँ

पर खाब्ब की कशिश से

नाता तोड़ नहीं पाता हुँ

नाता तोड़ नहीं पाता हुँ