Thursday, October 4, 2018

मिथ्या

हर मिथ्या भी एक सत्य हैं

जाने किसके पीछे क्या रहस्य हैं

हर तरफ फ़ैला हुआ एक भ्रम हैं

पिरोया हुआ जिसमें एक कटु सत्य हैं

धूल पड़ी हो दर्पण पर जहाँ

असत्य ही वहाँ सत्य का आईना हैं

जमघट लगा हो झूठों का जहाँ

उड़ती हैं अफवाहें रोज नयी नयी वहाँ

सत्य असत्य की इस हलचल में

सत्य का यहाँ कोई मौल नहीं

फ़र्क करें तो करें कैसे

मिथ्या भँवर का इस युग में कोई तोड़ नहीं

इस युग में कोई तोड़ नहीं

पत्थरों का शहर

पत्थरों का शहर हैं ऐ ज़नाब

मुर्दाघरों सा यहाँ सन्नाटा हैं

बियाबान रात की क्या बात

दिन के उज्जाले में भी यहाँ

अस्मत आबरू शर्मसार हैं

कहने को हैं ए सभ्य समाज

पर जंगल का यहाँ राज हैं

दरिन्दों की हैवानियत के आगे

मूक जानवर भी यहाँ लाचार हैं

पानी से सस्ता बिकता मानव लहू यहाँ

शायद इसलिए

नरभक्षियों की बिसात के आगे यहाँ

खुदा भी खुद मौन विवश लाचार हैं

इसी कारण

पत्थरों के इस शहर में

कुदरत के कानून के आगे

मानवता जैसे कफ़न में लिपटी

कोई जिन्दा लाश हैं, कोई जिन्दा लाश हैं