उस अधूरे बेरंग बिखरे पते पर l
अर्ज़ियाँ डाली इन तन्हाइयों ने ll
आहटें हलकी थी इनके अल्फ़ाज़ों की l
दस्तक चुप चुप थी इनके हुँकारों की ll
फिरा ले उन्हें डाकिया हर गली गली l
मिला ना ठिकाना उसे किसी गली भी ll
सादे कागज़ बिन कलम लिखी लिखावट l
जुड़ी हुई थी यह दिल लहू अक्षरों नाज़ से ll
वसीयत यह उस विरासत अकेली की l
मर्म जब जब पढ़ूँ उस रात अकेली की ll
नदारद आकांक्षाएँ इन खोई अर्जियों की l
ढूँढती फिर रही पता अपनी मर्ज़ियों की ll
सो गुम हो गयी थी अर्ज़ियाँ भी उस पते की l
तन्हाईयों ने भेजी उस अधूरे बिखरे पते की ll