Friday, May 15, 2015

जुगलबंदी

जुगलबंदी जब मेरी तेरी होगी

प्यार के तरानों की

स्वर लहरियाँ तब गूँजेगी

दिलों की इस जुगलबंदी में

सिर्फ प्रेम गीतों की लड़ियाँ होगी

संगम ऐसा होगा

जैसे स्वर और ताल की कड़ियाँ होगी

मैं और तुम से हम की सुन्दर रचना होगी

एकाकार सरगम की जैसे

सुहानी रिमझिम बरसात होगी

जुगलबंदी जब मेरी तेरी होगी

प्यार के तरानों की

स्वर लहरियाँ तब गूँजेगी

स्वर लहरियाँ तब गूँजेगी

प्रेम

प्रेम एक अनुभूति हैं

दो आत्माओं के मिलन की जननी हैं

रंग भरे इसमें सारे व्रह्माण्ड के

सृष्टि की यह जननी हैं

अदृस्य चेतना की यह

मर्मस्पर्शी अनुभूति हैं

पिरों बंधन को

झुका दे कायनात सारी

यह वो अनजानी शक्ति हैं

प्रेम अहसास ही जीवन मुक्ति हैं

कण कण में बसती इसके यह हस्ती हैं

छू लिया जिसने इस विधान को

प्रेम रूप की वो मूर्ति हैं

प्रेम रूप की वो मूर्ति हैं

Friday, May 8, 2015

ख़ामोशी

तन्हाई को आवाज़  दू तो

शब्दों के घुँघरू बिखर जाते हैं 

एक परछाई की तम्मना में

लब्ज़ ख़ामोश हो जाते हैं

गुजरती क्या हैं इस दिल पे

ये ना पूछों यारों

एक एक पल जैसे

एक सदी बन जाती हैं

खुदगर्ज़ी के आलाम में जैसे

जिंदगी सिमट जाती हैं

ओर इन फ़ासलों के दरमियाँ

ख़ामोशी घऱ अपना बना लेती हैं

घऱ अपना बना लेती हैं 

पनाह

आरजू मोहब्बत से की

रुसवा ज़माने ने ने कर दिया

रंजो गम की दास्ताँ को

साकी भी भुला ना सकी

खामोश लबों के दर्द को

साकी भी बयां ना कर सकी

सिसकते अरमानों  को

मोहब्बत के घरौंदे में

पनाह दिला ना सकी

पनाह दिला ना सकी

उल्फ़त

बड़ी उल्फ़त है इस ज़माने में

साया भी साथ नहीं देता

इस खुदगर्ज़ ज़माने में

नासिर भी नहीं होती नजरें

मेहरबाँ हो जाए ताकि तक़दीर अपनी

और टूट जाए बंदिशों के ताले